निबंध-रत्नावली
हुए रास्ते पर चलकर हम भी अपने आचरण को आदर्श के ढाँचे में नहीं ढाल सकते । हमें अपना रास्ता अपने ही जीवन की कुदाली की एक एक चोट से रात-दिन बनाना पड़ेगा और उसी पर चलना भी पड़ेगा । हर किसी को अपने देश-कालानुसार रामप्राप्ति के लिये अपनी नैया आप ही चलानी भी पड़ेगी। यदि मुझे ईश्वर का ज्ञान नहीं तो ऐसे ज्ञान ही से क्या प्रयोजन ? जब तक मैं अपना हथौड़ा ठीक ठीक चलाता हूँ और रूपहीन लोहे को तलवार के रूप में गढ़ देता हूँ तब तक यदि मुझे ईश्वर का ज्ञान नहीं तो न होने दो । उस ज्ञान से मुझे प्रयोजन ही क्या ? जब तक मैं अपना उद्धार ठीक और शुद्ध रीति से किए जाता हूँ तब तक यदि मुझे आध्यात्मिक पवित्रता का भान नहीं तो न होने दो। उससे सिद्धि ही क्या हो सकती है। जब तक किसी जहाज के कप्तान के हृदय में इतनी वीरता भरी हुई है कि वह महाभयानक समय में भी अपने जहाज को नहीं छोड़ता तब तक यदि वह मेरी और तेरी दृष्टि में शराबी और स्त्रैण है तो उसे वैसा होने दो। उसकी बुरी बातों से हमें प्रयोजन ही क्या ? आँधी हो-बरफ हो- बिजली की कड़क हो-समुद्र का तूफान हो-वह दिन रात आँख खोले अपने जहाज की रक्षा के लिये जहाज के पुल पर घूमता हुआ अपने धर्म का पालन करता है । वह अपने जहाज के साथ समुद्र में डूब जाता है ; परंतु अपना जीवन