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निबंध-रत्नावली

स्वयं ईसा होता है- मंदिर का पुजारी स्वयं ब्रह्मर्षि होता है- मसजिद का मुल्ला स्वयं पैगंबर और रसूल होता है ।

यदि एक ब्राह्मण किसी डूबनी कन्या की रक्षा के लिये- चाहे वह कन्या किसी जाति की हो, किसी मनुष्य की हो, किसी देश की हो-अपने आपको गंगा में फेंक दे-चाहे फिर उसके प्राण यह काम करने में रहें या जायँ-तो इस कार्य के प्रेरक आचरण की मौनमयी भाषा किस देश में, किस जाति में, और किस काल में, कौन नहीं समझ सकता? प्रेम का आचरण, उदारता का आचरण, दया का आचरण-क्या पशु और क्या मनुष्य-जगत् भर के सभी चराचर आप ही आप समझ लेते हैं। जगत् भर के बच्चों की भाषा इस भाष्य- हीन भाषा का चिह्न है । बालकों के इस शुद्ध मौन का नाद और हास्य भी सब देशों में एक ही सा पाया जाता है।

एक दफे एक राजा जंगल में शिकार खेलते खेलते रास्ता भूल गया। उसके साथी पीछे रह गए। घोड़ा उसका मर गया। बंदूक हाथ में रह गई। रात का समय आ पहुँचा । देश बर्फानी, रास्ते पहाड़ी। पानी बरस रहा है। रात अँधेरी है। ओले पड़ रहे हैं। ठंडी हवा उसकी हड्डियों तक को हिला रही है। प्रकृति ने, इस घड़ी, इस राजा को अनाथ बालक से भी अधिक ब-सरो-सामान कर दिया । इतने में दूर एक पहाड़ी की चोटी के नीचे टिमटिमाती हुई बत्ती की लौ दिखाई दी। कई मील तक पहाड़ के ऊँचे नीचे