पृष्ठ:निबंध-रत्नावली.djvu/१६

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

( १२ ) का वंश के राजा हरिचंद्र ने गुलर में राज्य स्थापित कर सन् १४२० में हरिपुर को अपना राज्यनगर बनाया था। उक्त राजा ने अपने कुछ गहतों को “जडॉट" ग्राम जागीर की भाँति दे दिया था, वहीं पुरोहित “जडीटिए' कहलाए। उन्हीं पुरोहितों के वंश में संवत् १८६२ में पंडित शिवरामजी जन्म हुआ था जिन्होंने काशी आकर श्री गौड़ स्वामो तथा अन्य कई विद्वानों से व्याकरण आदि शास्त्रों का बहुत अच्छी शिक्षा पाई थी। उनकी याग्यता और विद्वत्ता से प्रसन्न होकर जयपुर के महाराज सवाई रामसिंह ने उन्हें अपने पास रख लिया था। जयपुर में पडित शिवरामजी ने प्रधान पंडित रहकर सैकड़ों विद्यार्थियों को पढ़ाया और अच्छा यश प्राप्त किया था। संवत् १९६८ में उनका परलोकवास हो गया। पडित चद्रधर शर्मा उक्त पंडितजी के ज्येष्ठ पुत्र थे। इनका जन्म २५ आषाढ़ सवत् १९४० को जयपुर में हुआ था। बाल्या- वस्था में इन्होंने अपने पिताजी से ही शिक्षा पाई थी। उसी समय इन्हें संस्कृत का विशेष अभ्यास कराया गया था। छोटी अवस्था में ही इन्हें सस्कृत बोलने का अच्छा अभ्यास हो गया था। जिस समय ये पाँच छः वर्ष के थे, इन्हें तीन चार सौ श्लोक और अष्टाध्यायी के दो अध्याय कंठस्थ थे। नौ दस वर्ष की अवस्था में एक बेर इन्होंने संस्कृत का छोटा सा व्याख्यान देकर भारतधर्म महामंडल के कई उपदेशका को चकित कर दिया था। प्रसिद्ध संस्कृत मासिक पुस्तक 'काव्यमाला' के