पृष्ठ:निबंध-रत्नावली.djvu/१५८

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

११८ निबंध रत्नावली जब हम कभी वीरों का हाल सुनते हैं तब हमारे अंदर भी वीरता की लहरें उठती हैं और वीरता का रंग चढ़ जाता है। परतु वह चिरस्थायी नहीं होता। इसका कारण सिर्फ यही है कि हमारे भीतर वीरता का मसाला तो होता नहीं। हम सिर्फ खाली महल उसके दिखलाने के लिये बनाना चाहते हैं। टीन के बरतन का स्वभाव छोड़कर अपने जीवन के केंद्र में निवास करो और सचाई की चट्टान पर दृढ़ता से खड़े हो जाओ। अपनी जिंदगी किसी और के हवाले करो ताकि जिंदगी के बचाने की कोशिशां में कुछ भी वक्त जाया न हो। इसलिये बाहर की सतह का छोड़कर जीवन के अंदर की तहों में घुस जाओ; तब नए रंग खुलेंगे। द्वेष और भेददृष्टि छोड़ो, रोना छूट जायगा! प्रेम और आनंद से काम लो; शांति की वर्षा होने लगेगी और दुखड़े दूर हो जायेंगे। जीवन के तत्त्व का अनुभव करके चुप हो जाओ; धीर और गंभीर हो जाओगे। वीरों की, फकीरों की, पोरों की यह कूक है-हटी पीठं, अपने अंदर जाओ, अपने आपका देखो, दुनिया और की और हो जायगी। अपनी आत्मिक उन्नति करो।