पृष्ठ:निबंध-रत्नावली.djvu/१५२

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

निबंध-रत्नावली " देता और मुसीबत को टाल देता, परंतु जिसको हम मुसीबत जानते हैं उसको वह मखौल समझता था: "सूली मुझे है सेज पिया की, साने दो मीठी मीठी नोंद है आती ।" अमर ईसा को भला दुनिया के विषय-विकार में डूबे लोग क्या जान मकतं थे ? अगर चार चिड़ियाँ मिलकर मुझं फाँसी का हुक्म सुना दें और मै उसे सुनकर रो दृ या डर जाऊँ तो मेरा गौरव चिड़ियो से भी कम हो जाय । जैसे चिड़ियाँ मुझे फाँसी देकर उड़ गई वैसे ही बादशाह और बादशाहतें आज खाक में मिल गई हैं। सचमुच ही वह छोटा सा बाबा लोगों का सच्चा बादशाह है । चिड़ियों और जानवरों की कचहरियों के फैसलों से जो डरते या मरत हैं वे मनुष्य नहीं हो सकत । रानाजी ने जहर के प्याले से मीराबाई को डराना चाहा । मगर वाह री सचाई ! मीरा ने उस जहर को भी अमृत मान- कर पी लिया। वह शेर और हाथी के सामने की गई, वाह रे प्रेम ! मस्त हाथी और शेर ने देवी के चरणों की धूल को अपने मस्तक पर मला और अपना रास्ता लिया । इस वास्त वीर.पुरुष आगे नहीं, पीछे जाते हैं। भीतर ध्यान करते हैं। मारते नहीं, मरते हैं। वह वीर क्या जो टीन के बर्तन की तरह झट गरम और झट ठंढा हो जाता है। सदियों नीचे आग जलती रहे तो भी शायद ही वीर गरम हो और हजारों वर्ष बर्फ उस पर जमती रहे तो भी क्या मजाल जो उसकी वाणी तक ठंढी हो । मगर