पृष्ठ:निबंध-रत्नावली.djvu/१५

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( ११ ) लिये उन्होंने नौकरी छोड़ दी और ग्वालियर चले गए। पर वहाँ भी न ठहर सके । वहाँ से पंजाब में जडाँवाला में जाकर उन्होंने कृषिकार्य प्रारम्भ किया। यहाँ उन्हें विशेष आर्थिक कष्ट रहा । उनका देहांत ३१ मार्च सन् १९३१ ( संवत् १९८८), को हुआ। सरदार पूर्णसिंह के लिखे पाँच हिंदी लेखों का पता अब तक चला है-(१) कन्यादान, (२) पवित्रता, (३) आचरण की सभ्यता, (४) मजदूरी और प्रेम, (५) सच्ची वीरता। इनमें से अधिकांश लेख 'सरस्वती' पत्रिका में समय समय पर प्रकाशित हुए हैं । इन लेखों की शैली भावप्रधान है। इनमें लाक्षणिकता के द्वारा उनकी भाषा को शक्ते और भावों का विभूति को अत्यंत मनोहर छटा देख पड़ती है। इस नई शैनी के प्रवर्तक प्रो० पूर्णसिंह थे। अभी तक उनकी समकक्षता करने की ओर किसी की प्रवृत्ति नहीं देख पड़ती। उसके लिए प्रकांड विद्वत्ता, भावों का प्रबल प्रवाह और अपने विचारों की तल्लीनता चाहिए। यद्यपि प्रो० पूर्णसिंह के पाँच ही लेखों का अब तक पता चला है, पर हिंदी निबंधों में वे एक विशिष्ट स्थान के अधिकारी हैं यदि प्रोफेसर पूर्णसिंह की सांसारिक स्थिति में घोर परिवर्तन न होता तो न जाने कितने रत्नों से वे भाषा के भांडार को मरते । (३) पंजाब का काँगड़ा प्रांत प्राचीन काल में त्रिगर्त कहलाता था । वहाँ के सोमवंशी राजा जब मुलतान छोड़कर पहाड़ों में गए थे तो अपने साथ पुरोहितों को भी लेने गए थे। उसी