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निबंध-रत्नावली
सीता ने बारह वर्ष का वनवास कबूल किया; महलों में रहना न कबूल किया। दमयंती जंगल जंगल नल के लिये रोती फिरी। सावित्री ने प्रेम के बल से यम को जीतकर अपने पति को वापस लिया। गांधारी ने सारी उम्र अपनी आँखों पर पट्टी बाँधकर बिता दी। ब्राह्म-समाज के महात्मा भाई प्रतापचंद्र मजूमदार अपने अमरीका के "लोवल लेकचर" में कन्यादान के असर को, जो उनके दिल पर हुआ था, अमरीका-निवासियों के सम्मुख इस तरह प्रकट करते हैं : यदि कुल संसार की स्त्रियाँ एक तरफ खड़ी हों और मेरी अपढ़ प्रियतमा पत्नी दूसरी तरफ खड़ी हो तो मैं अपनी पत्नी ही की तरफ दौड़ जाऊँगा।" ऋषि लोग संदेसा भेजते हैं कि इस आदर्श का पूर्ण अनुभव से पालन करने में कुल जगत् का कल्याण होगा। हे भारत- वासियो ! इस यज्ञ के माहात्म्य का आध्यात्मिक पवित्रता से अनुभव करो। इस यज्ञ में देवी और देवताओं को निमंत्रित करने की शक्ति प्राप्त करो। विवाह का मखौल न जानो। यज्ञ का खेल न करो । झूठी खुदगर्जी की खातिर इस आदर्श को मटियामेट न करो। कुल जगत् के कल्याण को सोचो।