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कन्यादान

देता है। हमारे देश के इस पारस्परिक अर्पण का दिव्य समय कुल दुनिया के ऐसे समय से अधिक हृदयंगम होता है। कन्या की समाधि अभी नहीं खुली। परंतु ऐसी योग-निद्रा में सोई हुई पत्नी के ऊपर यह आर्य नौजवान न्यौछावर हो चुका । इसके लिए तो पहली बार ही प्रेम को बिजली इस तरह गिरी कि उसका खबर तक न हुई कि उसका दिल उसके पहलू में प्रेमाग्नि से कब तड़पा, कब उछला. कब कूदा और कब हवन हो गया। अब भाई अपनी बहन का अपने दिल से उसके पति के हवाले कर चुका। पिता और माता ने अपने नयनों से गंगा-जल लेकर अपने अंगों को धोया और अपनी मेहँदी रंगी पुत्री का उसके पति के हवाले कर दिया। ज्योंही उस कन्या का हाथ अपने पति के हाथ पर पड़ा त्योंही उस देवी की समाधि खुली। देवी और देवताओं ने भी पति और पत्नी के सिर पर हाथ रखकर अटल सुहाग का आशीर्वाद दिया। देवलोक में खुशी हुई। मातृलोक का यज्ञ पूरा हुआ। चंद्रमा और तारागण, ध्रुव और सप्तषि इसके गवाह हुए। मानो ब्रह्मा ने स्वयं आकर इस संयोग का जोड़ा। फिर क्यों न पति और पत्नी परस्पर प्रेम में लीन हों ? कुल जगत् टूट फूटकर प्रलय- लीन सा हो गया; इस पत्नी के लिये केवल पति ही रह गया। क्या रंगीला जोड़ा है जो कुल जगत् का प्रलय-गर्भ में लीन कर अनंताकाश में प्रेम की बाँसुरी बजाते हुए बिचर रहा है। प्यारे ! हमारे यहाँ तो यही राधा-कृष्ण घर घर बिचरते हैं।