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निबंध रत्नावली

दिया है। सारे घर में पवित्रता छा गई है। शान्ति, आनन्द और मंगल हो रहा है । एक कंगाल गृहस्थ का घर इस समय भरा पूरा मालूम होता है । भूखों को अन्न मिलता है। संबंधी मेहमानो को भोजन देने का सामर्थ इस घर में भी तेरे त्याग के बल से आ गया है। सचमुच कामधेनु आकाश से उतर- कर ऐसे घर में निवास करती है। पिता अपनी पुत्री को देख- कर चुपके-चुपके रोता है। पुत्री के महात्याग का असर हर एक के दिल पर ऐसा छा जाता है कि आजकल भी हमारे टूटे फुटे गृहस्थाश्रम के खंडहर में कन्या के विवाह के दिन दर्दनाक होते है। नयनों की गगा घर में बहती है । माता-पिता और भाई का देवी आदेश होता है कि अब कन्यादान का दिन समीप है। अपने दिल का इस गंगा-जल से शुद्ध कर लो यज्ञ होनेवाला है। ऐसा न हो कि तुम्हारे मन के संकल्प साधारण क्षुद्र जीवन के संकल्पों से मिलकर मलिन हो जायँ । ऐसा ही होता है। पुत्री-वियोग का दुःख, विवाह का मंगलाचार और नयनों की गंगा का स्नान इनके मन को एकाग्र कर देता है। माता, पिता, भाई, बहन और सखियाँ भी पतिवरा कन्या के पीछे आत्मिक और ईश्वरी नभ में बिना डोर पतंगों की तरह उड़ने लगते हैं। आर्य-कन्या का विवाह हिंदू-जीवन में एक अद्भुत आध्यात्मिक प्रभाव पैदा करनेवाला समय होता है, जिसे गहरी आँख से देखकर हमें सिर झुकाना चाहिए।