लहरों में सदा लहराती है। कभी सूर्य की तरह तेजस्विनी और कभी चंद्रमा की तरह शांतिप्रदायिनी होकर वह अपने पति की प्यारी है। वह उसके दिल की महारानी है। पति के तन, मन, धन और प्राण की मालिक है। सच्चे आर्य-गृहों में इस कन्या का राज है। हे राम! यह राज सदा अटल रहे!
इसमें कुछ संदेह नहीं कि कन्या-दान आत्मिक भाव से तो वही अर्थ रखता है जिस अर्थ में सावित्री, सीता, दमयंती और शकुंतला ने अपने आप को दान किया था: और इन नमूनों में कन्यादान का आदर्श पूर्ण रीति से प्रत्यक्ष है। प्रश्न यह है कि यह आदर्श सब लोगों के लिये किस तरह कल्याणकारी हो?
लेखक का खयाल है कि आर्य-ऋषियों की बनाइ हुई विवाह- पद्धति इस प्रश्न का एक सुदंर उत्तर है। एक तरीका तो आन्तरिक अनुभव से इस आदर्श को प्राप्त करना है। वह तो, जैसा ऊपर लिख आए हैं, किसी किसी के भाग्य में होता है। परंतु पवित्रात्माओं के आदेश से हर एक मनुष्य के हृदय पर आध्यात्मिक असर होता है। यह असर हमारे ऋषियो ने बड़े ही उत्तम प्रकार से हर एक नर-नारी के हृदय पर उत्पन्न किया है। प्रेमभाव उत्पन्न करने ही के लिये उन्होंने यह विवाह-पद्धति निकाली है। इससे प्रिया और प्रियतम का चित्त स्वत: ही परस्पर के प्रेम में स्वाहा हो जाता है। विवाहकाल में यथोचित रीतियों से न सिर्फ हवन की अग्नि ही जलाई जाती है किंतु प्रेम की अग्नि की ज्वाला भी प्रज्वलित की जाती है जिसमें पहली