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कन्यादान

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योरप में गृहस्थों की बेचैनी

आजकल पश्चिमी देशों में झूठी और जाहिरी शारीरिक आजादी के खयाल ने कन्या-दान की आध्यात्मिक बुनियाद को तोड़ दिया है । कन्या दान की रीति जरूर प्रचलित है, परंतु वास्तव में उस रीति में मानो प्राण ही नहीं। कोई अखबार खोलकर देखो, उन देशों पति और पत्नी के झगड़े वकीलों द्वारा जजों के सामने ते होते हैं। और जज की मेज पर विवाह की सोने की अंगूठियाँ, काँच के छल्लों की तरह द्वेष के पत्थरों से टूटता हैं। गिरजे में कल के बने हुए जोड़े आज टूटे और आज के बने जोड़े कल टूटे । ऐसा मालूम होता है कि मौनोगेमी (स्त्री-व्रत ) का नियम, जो उन लोगों की स्मृतियों और राज-नियमा में पाया जाता है, उस समय बनाया गया था जब वहाँ कन्या-दान आध्यात्मिक तरीके से होता था और गृहस्थों का जीवन सुखमय था। भला सच्चे कन्यादान के यज्ञ के बाद कौन सा मनुष्य- हृदय इतना नीच और पापी हो सकता है। हुई कन्या के सिवा किसी अन्य स्त्री को बुरी दृष्टि से देखे। उस कुरबान हुई कन्या की खातिर कुल जगत् की स्त्री-जाति से उस पुरुष का पवित्र संबंध हो जाता है। स्त्री- जाति की रक्षा करना और उसे आदर देना उसके धर्म का अंग हो जाता है। स्त्री-जाति में से एक स्त्री ने इस पुरुष के प्रम में अपने हृदय की इसलिये आहुति दी है कि उसके हृदय