पृष्ठ:निबंध-रत्नावली.djvu/११

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गिरते न थे। उन्होंने हिंदी तथा संस्कृत में पद्य-रचना भी की है, पर वह अभी पुस्तकाकार प्रकाशित नहीं हुई। मिश्रजी का देहावसान संवत् १६६४ में चैत्र बदी ४ को 'कूँगड़ ग्राम में हुभा । इस ३६ वर्ष की आयु में से २५ वर्ष तो अध्ययन में निकल गए और देश की सेवा में वे केवल ११ वर्ष लगे रहे, पर इसमें भी उन्होंने वह कार्य किया जो अत्यंत महत्त्व- पूर्ण है। हिंदी साहित्य में पंडितजी ने उच्चकोटि के निबंध लिखकर उसके एक बड़े अभाव की पूर्ति की। ( २ ) सरदार पूर्णसिंह का जन्म सीमा प्रांत के ऐबटाबाद जिले के एक गाँव में संवत् १९३८ में हुआ था। इनके पिता एक साधारण सरकारी नौकर थे जो वर्ष के अधिकांश भाग में सीमा प्रांत प्रदेश की पहाड़ियों पर दौरा करते रहते और फसल तथा भूमि संबंधी कागज पत्रों की देखरेख किया करते थे। इसलिये घर-गृहस्थी की देखभाल इनकी माता किया करती थीं, जो एक साध्वी, धर्मप्राण और साहसी महिला थीं। जिस ग्राम में सरदार साहब का जन्म हुआ और जहाँ ये लोग रहते थे वहाँ पठानों की बस्ती अधिक थी। इन्हीं के बीच इनकी बाल्यावस्था बीती। इनकी माता के ही उद्योग और अध्यवसाय से ये रावलपिंडी के एक स्कूल में बैठाए गए। वहां इनकी माता इनके साथ रहती थीं । ये स्कूल के तेज लड़कों में न थे, पर मन लगाकर पढ़ते-लिखते रहते थे और परीक्षाओं में सुगमता से उत्तीर्ण हो जाते थे। यहाँ से एंट्रेंस पास करके ये लाहौर