पृष्ठ:नारी समस्या.djvu/९३

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सामाजिक बन्धन 1 कार्य क्षेत्र समाज का जीवन स्त्री और पुरुष दोनों पर अवलम्बित है और स्त्री तथा पुरुष की उन्नति अवनति परस्पर एक दूसरे पर निर्भर है । फिर भी आज तक उन्नति की प्रत्येक दिशा में स्त्रियों को जितना पीछे रखा गया है उसे देखकर आश्चर्य होता है । रूस, चीन, अमेरिका, फ्रांस, इंगलैण्ड, जापान आदि प्रगतिशील राष्ट्रों में स्त्रियों का लगभग राज- नीतिक, नागरिक आदि सभी अधिकार प्राप्त हैं और इसी का परिणाम है कि आज वे देश इतने शक्तिशाली हैं। बिना स्त्रियों की प्रेरणा के पुरुष में भी आधी शक्ति रह जाती है किन्तु स्त्रियों की प्रेरक शक्ति को केवल मोहक बना देने पर तो बेचारा पुरुषत्व घट काढ़कर प्रेम के गीतों में अपने को डुबोने लगता है। आज पुरुष अधिकार के मोहवश यह कह सकता है कि स्त्रिया समानाधिकार पाकर उच्छृखल हो जायँगी, अमयादित बन जायेंगी। पर मेरा विश्वास है कि उनमें सतत निवास करनेवाली दया, ममता, कोमलता, त्याग, सेवा और घर बाँधकर रहने की स्वाभाविक प्रवृत्ति उन्हें ऐसा नहीं करने दे सकती। एक बात और है । संग्रह करने की इच्छा पुरुषों से स्त्रियों में अधिक पाई जाती है । यह भी स्पष्ट है कि संग्रह करने की इच्छा घर की ओर आकर्षित करती है । घर छोड़ सकना स्त्रियों के लिये सम्भव नहीं । घर तो चाहिये ही, पर बाहर भी वे उतना ही अधिकार चाहती हैं जितना पुरुषों का घर पर है । बिना इसके स्त्री का ज्ञान अधूरा रहेगा । क्षेत्र और वातावरण सीमित, विचार सीमित । और समाज की प्राण भावी सन्तान की निमात्री के विचार, ज्ञान और क्षेत्र को संकुचित बनाना भावी सन्तान अर्थात् समाज का निकम्मा बनाना है । और क्या यह नहीं पूछा जा सकता कि कार्यक्षेत्रादि के विषय में नारी को छोड़कर अन्य किसी वर्ग का प्रश्न करने का क्या अधिकार ? क्या स्त्री पुरुष के कार्यक्षेत्र के सम्बन्ध में कभी प्रश्न करती है ? हम इतिहास में उन वीरांगनाओं की कथायें पढ़ते हैं जिन्होंने बीस-बाईस वर्ष की आयु में ही घर की मोहमाया भरी दीवारों को ढाहकर कवचकृपाण धारण कर युद्ध में शत्रुओं के दांत खट्टे कर दिये । हम पुराणों में उन उपाख्यानों को पढ़ती हैं जिनमें स्त्रियों ने अपने युद्धरत पति के कन्धे से कन्धा भिड़ाकर मैदान हथियाया । हम उन स्त्रियों की गाथायें जानते हैं जो पति द्वारा की गई भूलों की उपेक्षा कर सच्ची सहचरी के नाते उनके साथ नदी, पहाड़, झाड़, झंखाड़ नापती धूप, वर्षा, बर्फ का मेलती नानाविध यातनायें सहती रहीं । विदेशों की उन साहसी महिलाओं के चरित्र भी हमें देखने को ve