नारी-समस्या बन्द गायें पीजड़े से बाहर निकली हों हृदय में उठते हुए तूफान को दबाना जब शक्ति से बाहर हो जाता है तब वह बाहर निकल पड़ता है । कलाकार अपने इस तूफान को, उद्गारों को, यों ही नहीं बिखर जाने देता। वह उसे सँवारता है, सजाता है और माला में गुम्फित करता है । मनोयोग पूर्वक गुनगुनाता है । साधारण लोगों के हृदय में भी वे भाव तो रहते ही है किन्तु वे उन्हें यों ही विखेर देते हैं । कलाकार के मुँह से निकले हुए वे उद्गार गान के रूप में अमर हो जाते हैं । ये अमरता के तत्व स्त्रियों के गीतों में कुछ कम मात्रा में नहीं रहते; किन्तु उनका उपयोग उनके सारे सौन्दर्य पर पानी फेर देता है । साम्पत्तिक अधिकार स्त्रियों की सारी अवमानना, सारे तिरस्कार और परवशता के मूल में उनकी आर्थिक दुर्बलता है । अर्थ आज समस्त विश्व पर शासन कर रहा है। धर्म, नियम, शिक्षा, सदाचार, मनुष्यता सब कुछ खुले बाज़ार विक रही है । अर्थाभाव का फल है परावलम्बिता और हिन्दू समाज में अर्थ पर स्त्री का काई अधिकार न रहने से वह पिता, पति और पुत्र के हाथों की कठपुतली बनी रहती है । समाज-शास्त्र बतलाता है कि मनुष्य के खेती करने की अवस्था में आने से पूर्व परिवार पर स्त्री का ही शासन रहता था। उनके नाम से गोत्र चलता था। वैदिक युग में स्त्री समानाधिकारिणी रही। पीछे पिण्डदान में उसका अधिकार न रहन से श्राद्ध में सपिण्डों का ही स्थान मिलने के कारण उसे सम्पत्ति के अधिकारों से वंचित कर दिया गया। मुस्लिम सम्प्रदाय में आज भी स्त्री का साम्पत्तिक अधिकार प्राप्त है। हिन्दू समाज में साधारण स्त्रिया कमाती हैं । अध्यापन, चिकित्सा आदि कार्य पढ़ी लिखी स्त्रिया कर रही हैं । कल कारखानों, खदानों तथा अन्य क्षेत्रों में भी काम करने वाली स्त्रियों की संख्या कम नहीं है । घास, लकड़ी बेचना, पापड़ बेलना, सीना-पिरोना, सलमा-सितारा. लगाना आदि छोटे-मोटे काम गरीब परिवारों की स्त्रिया करती हैं और अपना तथा कुटुम्ब का पेट पालती हैं । पर क्या इस अपने कमाये धन पर भी उनका अधिकार रहता है ? समाज और कानून दोनों ने उन्हें इस अधिकार से वंचित कर रखा है । इस अतिशय परमुखापेक्षिता ने आज स्त्रियों के चेहरे का तेज नष्ट कर दिया है | उनमें अपने पैरों खड़े रहने की शक्ति ही नहीं रह गई है। उन्हें बात-बात में पुरुषों का मुँह ताकना पड़ता है । आज महिलाओं की सारी कुरीतियों, सारी परवशताओं का अगर कोई इलाज है तो वह है उनका सम्पत्ति पर अधिकार ।
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