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छोड़कर स्वयं को विशाल भारत का एक घटक और अन्तर्राष्ट्रीय परिवर्तनों का एक सजीव प्रेक्षक बनाने की योग्यता प्राप्त कर ले तो वह महान यश की अधिकारिणी है। इससे भी आगे जिन्हें जाने का सौभाग्य प्राप्त हो वे स्त्रियाँ धन्य हैं। किन्तु गृहस्थी बसाने के बाद सभी से इतना नहीं सध सकता, इससे निराश होने की कोई आवश्यकता नहीं। दीर्घ आशा, सु-विचार का बल और पवित्र शिक्षा के आश्रय में भारतीय महिला किसी से भी घटकर नहीं है। उनकी दैवी शक्ति आज लुप्त हो गई है, उनकी बुद्धि का कांजीहौस में बन्द करके उनके बौद्धिक जीवन का गढ़े में डाल दिया गया है, और उनके जीवन में होने वाली हानि को जानकर भी, बन्धुवर्ग, अपने स्वार्थवश उनकी ओर दुर्लक्ष्य कर रहा है। इतनी अड़चनों में से अपना रास्ता निकालने की शक्ति स्त्री को स्वयं ही एकत्रित करनी होगी।

संसार के सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति के जीवन में मुख्य आधार उसकी माता ही होती है। युग-प्रवर्तक परमहंस रामकृष्ण की माता को धन्य है। स्त्री-जीवन का उन्होंने महान गौरव प्रदान किया है। संस्कृति, वीरता और सतीत्व में भी स्त्रियों के नाम अजरामर हैं। विद्या, सङ्गीत, लेखन, वक्तृत्व इनमें से ऐसा कौनसा क्षेत्र है, जिसमें नारी ने गौरव न पाया हो। कभी उन्नति और कभी अवनति; ये दोनों इस सृष्टि की सन्तानें हैं। इन दो अवस्थाओं में से गुजरने के सिवा मानव की दूसरी गति नहीं है। आज हमारा स्त्री-समाज भी पतन, दासता और अज्ञान की कैद से बाहर निकलने का भगीरथ प्रयत्न कर रहा है। उसका फल मिले बिना कैसे रहेगा। दोनों बाजू बलवान, बुद्धिमान और प्रगतिशील हुए बिना, 'समाज-सुधार' शब्द अर्थ-रहित और हास्यास्पद है।

मनुष्य का स्वभाव ही ऐसा है कि वह सबसे पहले वाह्य सौन्दर्य को देखता है; किन्तु अन्तःकरण की भावना और विचारों की और उसका ध्यान देर से जाता है। और इस प्रकार मानव अपना आत्मघात स्वयं करने की तैयारी करता है। शिक्षा-प्रसार समाचार पत्र और सभा-सम्मेलनों के कारण अनेक स्त्रियों के आचार-विचार में परिवर्तन होना प्रारम्भ होगया है। प्रान्तीयता का भाव छोड़कर एक दूसरे के निकटतर आने का प्रयत्न जारी है। इन सारी हलचलों के परिणाम स्वरूप ही समाज-सुधार की प्रवृत्ति बढ़ती है। संसार की प्रगति के साथ ही साथ समाज की भी प्रगति हो रही है। मेरे ख्याल से यदि स्त्रियों का अनुकरण करना हो तो एक मनोवेधक प्रान्तीय गुण प्राप्त कर लेना चाहिये। इस दृष्टि को सामने रखकर नीचे दी हुई कल्पित रूप-रेखा अनेकों को मान्य होगी।