पृष्ठ:नारी समस्या.djvu/८९

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सामाजिक बन्धन. सब का जो परिणाम हो रहा है वह घर-घर में होने वाली कलह, स्त्रियों के अपहरण, भ्रूण हत्या, और वेश्याओं के बाज़ार के रूप में हमारे सामने स्पष्ट है । शारदा कानून पंगु है । उसका जनसाधारण पर काई प्रभाव नहीं । अधिकांश कन्यायें गौरी, रोहिणी और कन्या के रूप में आज भी फांसी के फन्दे पर लटकायी ही जा रही हैं । इन्हीं के साथ दहेज़ भी कोढ़ में खाज की तरह आ चिपका है । इसके परिणाम स्वरूप एक ओर तो बड़ी संख्या में कन्यायें बड़ी आयु तक कुवारी रह जाती हैं और दूसरी ओर बेब्याहे लड़के मा बाप का कासा करते हैं । इस प्रथा ने इतनी गहरी जड़ जमाली है कि हजार व्याख्यानों, लेखों और जातीय सभाओं के प्रस्तावों का इस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा है । बड़े-बड़े नेता और सुधारक मेज पर खड़े होकर लच्छेदार भाषा में भाषण झाड़ते हैं और मौका आने पर किसी बहाने का आश्रय लेकर कन्नी काट जाते हैं । बंगाल में, जहाँ दहेज़ की प्रथा अपनी सम्पूर्ण भीषणता के साथ वर्तमान है, इसका परिणाम देखा जा सकता है । विवाह सम्बन्धों में सारी अन्ध रीतिया उच्च वर्गों में ही विशेषकर प्रचलित हैं । सच पूछा जाय तो हमारे समाज की अधिकांश बुराइयों का सम्बन्ध विवाह-सम्बन्धी प्रथाओं से है । सम्भवतः हिन्दुसमाज ने प्रतिज्ञा कर.ली है कि वह लड़के को चाही कन्या से कदापि विवाह न करने देगा । दहेज केवल लड़कियों से ही लिया जाता हो सो बात नहीं है । अनेक जातियों और स्थानों में जहाँ गोत्रादि के बन्धन के कारण कन्यायें प्राप्त करने में कठिनता होती है लड़के वालों का लड़की की कीमत चुकानी पड़ती है। असल में यह एक सौदा है जिसे गरज होती है, खरीदता है । भला नारी जाति का इससे अधिक अपमान क्या होगा ? इसी कारण कन्यायें माता पिता के लिये भार बन रही हैं । अनेक जातियों में वे जन्म के साथ ही मार दी जाती है और उपेक्षा तो उनकी सारे हिन्दू समाज में होती है। इस कुप्रथा के उच्छेद के लिये नवयुवकों और नवयुवतियों का साहसपूर्वक सामने आना चाहिये । प्रान्त और जाति के बन्धन, कम से कम उपजाति के बन्धन तो अब समाप्त हो जाने ही चाहिये । फिर भी नवयुवतियों का मर्यादा और शिष्टता का ध्यान तो रखना ही होगा। धार्मिक विश्वास शास्त्रों में धर्म की अनेकों परिभाषायें दी गयी हैं और उनकी तरह-तरह की व्याख्यायें की गयी हैं । फिर भी उन सबका समन्वय इस कथन में हो जाता है कि जिससे इस लोक और परलोक दोनों की प्राप्ति. हो उसे धर्म कहते हैं । भावुकता और सुकुमार