नारी समस्या ७२ आगन्तुक का मुँह देखकर चूंघट निकालती हैं और इतना पतला कपड़ा मुँह पर डालती हैं कि सारा मुँह दिखाई देता है । पर्देवाली स्त्रिया एक आँख पर्दे से निकाल ताकती हैं। पीहर में पदी होता भी नहीं । ससुराल में होता है । इसका क्या अर्थ है ? मुँह पर का यह पदी धीरे-धीरे हमारी बुद्धि पर पड़ गया है । आज इसके खिलाफ ज़बर्दस्त जहाद होना चाहिये । पुरुष यदि चेष्टा करें तो यह कुप्रथा बहुत जल्द दूर हो सकती है । वैसे शिक्षित स्त्रियों ने इस रिवाज़ का बहुत कुछ हटा भी दिया है पर इतने से क्या होता है ? एक बात अवश्य स्मरण रखना चाहिये कि परदा-निवारण का अर्थ अविनय, अशिष्टता या उच्छंखलता नहीं है। वेशभूषा थोड़े-थोड़े परिवर्तन के साथ भारत में अनेकों वेशभूषायें प्रचलित हैं। पहनने के ढंग, कपड़ों के नाम और बनावट सभी कुछ अलग । महाराष्ट्रियन बहने १८ हाथ तक की गहरी रंगीन साड़ी पुरुषों के समान ही काछती हैं । गुजराती और मारवाड़ी बहनें १०, १२ हाथ की सफेद या हलके रंग की साड़ी पहनती हैं और अन्दर चड्डी और लहँगे । इन बहनों में घाघरे और ओढ़नी का भी रिवाज़ है । यू० पी०, बिहार में साड़ी पर चादर ओढ़ने की प्रथा है। यू० पी० के भी आधे भाग में लहँगे पहने जाते हैं । पंजाब की स्त्रिया सलवार और कुरते पर दो तीन हाथ की ओढ़नी ओढ़ती हैं। मदरास और बंगाल की साड़ियों की डिज़ाइने और पहनने का ढंग बिलकुल अलग रहता है । ईसाई, पारसी और मुसलमानी पोशाक में भी अन्तर रहता है । केवल कपड़ों में ही नहीं, बालों की बनावट, बिन्दी लगाने एवं गहनों के गढ़ाव में भी अन्तर मिलेगा। फिर भी शिक्षित नागरिक स्त्रियों की वेशभूषा में धीरे-धीरे बहुत कुछ समानता आती जा रही है । पुरानी रूढ़ियों से चिपकी स्त्रियों में देश के अनेक भागों में अब भी भारी-भरकम घाघरे पहनने का रिवाज़ चालू है । जेवरों के लिये साधारण स्थिति के घरों में बराबर कलह बनी रहती है । वास्तव में सौन्दर्य-साधन जेवरों से नहीं होता और न चमकमटक लिये कपड़ों से । स्वास्थ्य, सौन्दर्य, कमखर्ची, शिष्टता और सफ़ाई का खयाल रखकर हमें अपनी वेशभूषा निश्चित करनी चाहिये; भले ही इसके लिये रूढ़ि का बलिदान करना पड़े। विवाह बाल-विवाह, वृद्ध-विवाह, अनमेल-विवाह, पुरुषों का पुनर्विवाह का अधिकार देकर भी स्त्रियों को उससे वंचित रखना, बिना उभय पक्ष की स्वीकृति का विवाह इन
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