नारी समस्या योग्य माता नहीं हो सकतीं । जो स्त्रिया गृहस्थी से "रिटायर हो गई हैं अथवा विधवा हैं या विवाह नहीं करना चाहतीं उन्हें डाक्टरी, नर्सिंग, अध्यापन, सामाजिक और राजनैतिक क्षेत्र में भाग लेने का पूरा अधिकार होना ही चाहिये । अब तक कुछ लोगों का यह ख्याल था कि स्त्रिया वैज्ञानिक विषयों में पुरुषों के समान सफलता नहीं प्राप्त कर सकतीं, पर ऐसी बात नहीं है। रसायनशास्त्र बनस्पति शास्त्र आदि में आज अनेकां भारतीय महिलाओं ने अच्छी प्रगति की है । हर प्रकार का ज्ञान प्राप्त करने की उत्कण्ठा और योग्यता आज की महिलाओं में है, किन्तु जिन स्त्रियों को जिस दिशा में, जिस क्षेत्र में काम करना हो, उन्हें उसकी जानकारी विशेष रूप से प्राप्त करना चाहिये। शिक्षण के अनेक विषय हैं और सभी को सीखने के लिये काफी समय तथा काफ़ी शक्ति लगानी पड़ती है किन्तु गृहिणी धर्म को सीखने के लिये माता की, जवाबदारी संभालने के लिये हमारे शिक्षण में जो स्थान है, वह नहीं के बराबर है । यद्यपि यह सत्य है कि समाज का कल्याण जितना मातृत्व के सुधार पर निर्भर है उतना जीवन के दूसरे. किसी विषय पर नहीं । संगीत का कार्स तीन चार साल से कम नहीं, इसी प्रकार नृत्य; सिलाई, ड्राईंग, भूगोल, इतिहास, गणित, अर्थशास्त्र आदि अनेक विषय हैं जिनमें हम खोपड़ी पचा-पचाकर थक जाते हैं, किन्तु चालीस करोड़ हिन्दुस्थानियों में दस पाँच लाख भी ऐसे शिक्षित नहीं हैं जिन्हें शिशु-पालन का ठीक ज्ञान हो । आज हमारे बच्चे उसी तरह पल रहे हैं जिस तरह जंगल में घासपात अपने आप बढ़ते, पनपते और सूखते हैं। हम बगीचे के पौधों को संवारने के लिये अच्छा माली तलाश करने की जरूरत का तो अनुभव कर पाते हैं पर राष्ट्र के प्राण सजीव पौधों को सँवारने सुधारने की ओर हमारा और हमारी सरकार का कितना ध्यान जाता है ? तीन वर्ष की आयु तक तो सारा उत्तरदायित्व माता पर रहता है इसलिये शिशुपालन नारी के शिक्षण में सब से महत्वपूर्ण विषय माना जाना चाहिये । हमारे यहाँ एक और समस्या है सहशिक्षण की । इससे तो सभी सहमत होंगे कि प्रारम्भिक कक्षाओं में सहशिक्षण न केवल हानिरहित है अपितु बालक के स्वाभाविक मानसिक विकास के लिये आवश्यक भी है। भाई-बह्न के पवित्र सम्बन्ध का विकास इसी स्थान पर होना सम्भव है । उच्च कक्षाओं में विषयों के अन्तर से सहशिक्षण को हम
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