पृष्ठ:नारी समस्या.djvu/८५

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हमारा नारी समाज बेहद खर्चीलापन, स्वावलम्बन, क्रियाशीलता, क्रियाशक्ति और साहस का अभाव लिये हुए यह शिक्षण युवकों को बर्बाद करनेवाला सिद्ध हुआ है। जब वर्तमान शिक्षा से पुरुषों का ही अहित हुआ है, तब वह स्त्रियों के लिये कहाँ तक लाभकर हो सकता है ? शिक्षा वही होना चाहिये जिससे मस्तिष्क का विकास हो, भले बुरे की पहिचान हो, हृदय का विस्तार हो, और जो जीवन की कठिनाइयों में काम दे सके । केवल कुछ पुस्तकों के रट लेने से और इधर-उधर की थोड़ीसी जानकारी प्राप्त कर लेने से ही काई शिक्षित नहीं हो जाता। जो जीवन में हर जगह ठोकर खाता है, बुरी तरह गिरता है विचारों की उच्छृखलता के साथ बह जाता है, क्या उसे हम शिक्षित कह सकते हैं ? स्त्री और पुरुष को प्रारम्भिक शिक्षा के बाद अपने-अपने क्षेत्र की शिक्षा लेना चाहिये और वह भी उच्च आदर्शों के साथ । मैं देखती हूँ प्रायः शिक्षित लड़कियों का व्यर्थ का अहंकार, अभिमान हो जाता है । यह शिक्षा का दोष है और इसीलिये कुछ लोग उच्च शिक्षा दिलाना पसन्द नहीं करते । मैंने कई बहिनों से सुना है—'देखिये मैं तो पढ़ी लिखी नहीं हूँ। ऐसा न हो कि पढ़ी लिखी बहन आकर मेरे कान खींचे ।' विचार कर देखें तो यह सन्देह गलत नहीं है । शिक्षण काल में लड़कियों को गार्हस्थ्य जीवन की शिक्षा दी ही नहीं जाती । उदारता, सहनशीलता, सेवा, त्याग, संयम, चतुरता, व्याव- हारिकता, परोपकार, सन्तान-पालन, घर की सफाई और सजाना, रसाई, कपड़े धुलाई अनाज की सफाई और व्यवस्था, स्नानघर, पेशाबघर, पाखाने की सफाई, गोपालन, बागवानी, कमखर्ची आदि का शिक्षण हरएक गृहिणी के लिये आवश्यक है । ऐसी बहू का पाकर कौन अपना भाग्य न सराहेगा ? जिन लड़कियों को शादी करके गृहस्थ जीवन सुखमय बनाना हो उन्हें उपर्युक्त सभी प्रकार का ज्ञान पूर्णतया प्राप्त करना चाहिये; केवल पुस्तकां से ही नहीं. क्रियात्मक भी । घरों में ही नहीं स्कूलों में भी इस प्रकार की शिक्षा की यथोचित व्यवस्था होनी चाहिये । का महान और अत्यन्त कठिन कार्य स्त्रिया जितनी दक्षता से कर सकती हैं, पुरुष नहीं। किन्तु सारी बुराई तो इसी · जगह है कि स्त्रियों के कार्य हीनदृष्टि से देख जाते हैं । न स्त्रियों के लिये उनके विषयों की उच्च शिक्षा ही की व्यवस्था की गई है और न किसी प्रकार की प्रतिष्ठा ही उनके कार्यों को प्राप्त हुई है । खैर ! समय बहुत आगे बढ़ गया है। अब तो स्त्रियों को घर के ही समान बाहरी ज्ञान भी होना अत्यन्त आवश्यक है। बिना बाहरी ज्ञान के वे योग्य गृहिणी और , सन्तानपालन