नारी समस्या ६८ सारी प्रगति अभी तक शहरों तक ही सीमित है और शहरों में भी एक विशेष वर्ग तक । साधारण श्रेणी की स्त्री आज भी पुरानी रूढ़ियों के जुए का उसी प्रकार नीचा सिर किये ढोती जा रही है । उसकी शिक्षा, सभ्यता की गाड़ी जहाँ की तहाँ ठप खड़ी है। उसकी विवशता, असहायता, आदि में काई अन्तर नहीं आया है । सुधारक वर्ग द्वारा भी इस श्रेणी की थोझै उपेक्षा नहीं हुई और देश की अठारह उन्नीस करोड़ संख्या में ६८ प्रतिशत भाग इसी श्रेणी का है । शिक्षित वर्ग की महिलायें भी संगठित रूप में आगे बढ़ पायी हों से बात नहीं है। हमारी बीस वर्ष पहले की और आज की समस्याओं में विशेष अन्तर नहीं आ पाया है इसलिये यदि हम यहाँ भारतीय नारी की मुख्य-मुख्य समस्याओं पर अलग-अलग विचार करें तो अप्रासंगिक न होगा। शिक्षा- हमारी अनेक समस्याओं में शिक्षण का स्थान मुख्य है । प्राचीन आधुनिक शिक्षण के आदर्शों और अध्ययन की शाखाओं में बड़ा अन्तर हो गया है । हमारा प्राचीन शिक्षा का आदर्श था 'निःश्रेयस-प्राप्ति' । उस समय जीवन भी आज जैसा जटिल न था। वैज्ञानिक उन्नति ने जीवन की जटिलता नम रूप में हमारे सम्मुख उपस्थित कर दी है। आज हम जगत की ओर से आँख नहीं बन्द कर सकते । इसलिये जीवन और उसकी निर्मात्री शिक्षा का लक्ष्य हो गया है विश्व की स्वागीण प्रगति में सहायक बनना । इसीलिये आज अध्ययन का क्षेत्र बड़ा विस्तृत हो गया है । ज्ञान पिण्ड से लेकर ब्रह्माण्ड तक के अणु-अणु के रहस्य का उद्घाटित करने में संलग्न है। केवल विद्वान कहकर अाज हम किसी का पूरा परिचय नहीं दे सकते । किस विषय का विद्वान, यह प्रश्न तुरन्त सामने आयेगा । फिर वे विषय भी 'बहुशाखा ह्यनन्ताश्च' ही समझिये । अध्ययन के विषयों में इतना विस्तार होने तथा उसके आदर्श में परिवर्तन होने का जो मधुर परिणाम होना चाहिये था वह न होकर ठीक उसके विपरीत हुआ है । कौन नहीं जानता कि मानवता की उपासना का डिंडिम घोष करनेवाले स्वयं पशुता के .. नग्न नृत्य का दृश्य उपस्थित कर रहे हैं । सारा संसार अशान्त है । जन-जन को, देश-देश को अपनी सुख-सुविधा, धन-दौलत, सीमा वृद्धि, प्रभुत्व आदि की चिन्ता लगी हुई है ! अब भी वर्तमान शिक्षण का परिणाम बतलाने की आवश्यकता है ? भारत का शिक्षण तो और भी निकम्मा है । वैज्ञानिक, औद्योगिक शिक्षण का तो यहाँ सर्वथा अभाव है ही; जिन विषयों का शिक्षण दिया भी जाता है वे जीवन में उपयोगी नहीं सिद्ध हो पाते।
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