५५ राजस्थानी स्त्रियों के वस्त्राभूषण कुहनी तक रहते हैं । इसी प्रकार हाथ, पैर और मुँह पर काले-काले दाग गुदाने की रिवाज़ भी भद्दी और जंगली है । हर्ष की बात है कि यह रिवाज़ अब कुछ कम हो रही है। गहना पहनना कोई बुरी बात नहीं है लेकिन उनका समयानुकूल और सुन्दर होना अत्यन्त आवश्यक है । मैं बहनों के गहने पहिनने का घोर विरोध नहीं करती क्योंकि भूषगा सुन्दरता की वृद्धि के साथ समय-समय पर सहायक भी सिद्ध हुए हैं। वैसे पुरुष इच्छा होने पर किसी न किसी कौशल द्वारा गहने भी उतरवा लेता है लेकिन अब पुरुष को अनुभव हो गया है कि स्त्रियों के गहने ही विपत्ति में काम आते हैं । इसीलिये कुछ लोग इस तर्क का सहारा लेते हैं । स्त्री पति या पुत्रों को कष्ट में देखकर गहनों का मोह तो करती नहीं । कानून से स्त्री को सिवा अपने गहनों के और किसी प्रकार का आर्थिक अधिकार नहीं । स्त्रियाँ तो त्याग और सौजन्य की मूर्ति हैं, यदि उन्हें बार बार यही सिखलाया जावे कि गहने न पहिनो, गहने पहिनना सभ्य और शिक्षित स्त्रियों के लक्षण नहीं तो वे गहने भी न पहिनंगी और जब वे उन्हें पहनती ही नहीं हैं तब उनके लिये गहने बनवायेगा ही कौन ? ऐसी दशा में स्त्रियों के पास आर्थिक अधिकार क्या रह जायगा ? इसलिये स्त्रियों को कला-पूर्ण ढंग के हलके और अपनी परिस्थिति के अनुकूल कीमती गहने पहिनना ठीक ही है। किन्तु ऐसी दलीलें देनेवाले सज्जन यदि स्त्रियों को पारिवारिक सम्पत्ति में भाग दिलाने के लिये कोई कानून बनवाने का प्रयत्न करें तो बड़ा उपकार हो । पुरुषों को चाहिये कि वे शादी के समय जो गहने बनवाते हैं उनकी जगह बहू को नगद रुपये दे दें और किसी अच्छी जगह उन रुपयों को बहू के नाम से जमा करा दें । इस प्रकार सम्भव है, वे रुपये कुछ दिनों में दूने हो जायें। गहनों में वे आधे रह जाते हैं । इस प्रकार गहनों में बहू की दूनी हानि और ब्याज में चौगुना लाभ होता है.। यदि बहू की इच्छा गहने पहिनने की हो तो वह अपनी इच्छानुकूल गहने भी अपने रुपये से बनवा सकती है । शादी के पहिले पति के घर से गहने दिये जाते हैं वे लड़की की पसन्द से नहीं बनवाये जाते इसलिये अनेक स्थानों में तो फिर से उन गहनों को तुड़वाकर नये गहने बनाने पड़ते हैं । इससे गढ़ाई का नुकसान उठाना पड़ता है और सोने में भी सुनार की छाप लग जाने से वह शुद्ध नहीं रह पाता । यदि स्त्रियों को विश्वास हो जाये कि उनके रुपयों पर किसी की कुदृष्टि नहीं है
पृष्ठ:नारी समस्या.djvu/७१
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।