नारी-समस्या की शक्ल भी हम अच्छी तरह बिगाड़ डालती हैं। काश हम इतना कष्ट यदि विद्या पढ़ने में उठावें तो आज मिट्टी से सुवर्ण बन जाय । हमारी कष्टसहिष्णुता अन्तिम दर्जे की है; लेकिन हमारा यह उत्तम गुण हमारा ही नाश कर डालता है। और हम परले सिरे की स्वार्थी तथा गहनों की अत्यधिक शोकीन कहलाने का कलंक सहती हैं। यह शौक सिखाया है हमें पुरुषों ने ही । वे हमें गहनों से लादकर इसलिये समाज में भेजना चाहते हैं उनकी कीर्ति बढ़े । वे समाज में धनी और बड़े आदमी कहलावें। इसीलिये वे हमें अच्छे-अच्छे वस्त्र पहनाते हैं और दास-दासियों से घिरी बन्द मोटरों में इसलिये घुमाते हैं कि लोग जानें कि ये अमुक सेठ की श्रीमती है । अपढ़ स्त्रियाँ बेचारी इस सब पर इतरा बैठती हैं । वे अपनी वास्तविक स्थिति को भूल जाती हैं। उन्हें यह ध्यान ही नहीं रहता कि ये सब वस्त्राभूषण; राजपाट पुरुष इच्छा करते ही एक झटके में छीन सकता है। हम गले में भी भारी-भारी गहने पहने रहती हैं जिससे. गले पर मैल जम जाता और गला काला पड़ जाता है । मैल नहीं तो काले निशान तो पड़ ही जाते हैं । हम शरीर का . कोई भाग गहनों से रहित नहीं रहने देतीं । यहाँ तक कि हम दाँतों तक में चूप लगाती हैं । कोई कोई स्त्रियाँ तो दाँतों में छेद करवाकर उनमें चूप पक्की करवा लेती हैं ताकि मरते समय उसे कोई निकाल न सके । चूँप के कारण दाँत साफ नहीं किये जा सकते जिससे उनमें बीमारी लग जाती है । इससे स्वास्थ्य को भी अत्यन्त हानि पहुँचती है। और . अपने साथ दाँतों को भी ले जाती हैं ।. दाँतों का गहना. तो उनकी स्वच्छता ही है । अनारदानों से चमकीले और दूध से धवल निर्मल दाँतों के सामने चूप बेचारी कहाँ उहर सकती है। हमारा अज्ञान ही हीरक-कणा को फेंककर पत्थर उठाकर उससे प्यार करना सिखाता है। अब पैरों की तरफ नजर डालिये--प्रत्येक पैर में सेर-सेर भर के चाँदी के बेढंगे गहने उच्छृखलता पूर्वक लटकते दिखाई देते हैं । इनके कड़ों, छड़ों की श्रृंखला घुटनों को छूती रहती है और जब इनकी सवारी निकलती है तो अनेकों के दिल दहला देती है अथात् इतने ज़ोर से टनाटन का बेसुरा गर्जन होता है, जो फ़लीग भर तक के लोगों को चौंकाये बिना नहीं रहता। राजस्थानी समाज में कहीं-कहीं हाड़ों की चूड़ियों का अरुचिकर पहनाव जारी है। हाड़ के लम्बे-लम्बे चूड़े कोहनी से लेकर केन्चे तक और कलाई से लेकर
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