हमारी वेश-भूषा अधिकतर प्रान्तों में प्रायः समान ही हैं। बुर्का और पायजामा मुस्लिम स्त्रियों की विशेषता है । आजकल शिक्षित महिलायें तो पायजामा नहीं पहिनतीं । साड़ी के अन्दर लहँगा ही पहिनती हैं और बुर्के को भी नापसन्द करती हैं । इसे धीरे-धीरे त्यागती जा रही हैं । अन्य भारतीय महिलाओं की वेष-भूषा में भी दिनों दिन बहुत साम्य होता जा रहा है । लपेटेदार बिला काछी छःगजी साड़ी तो बराबर उन्नति करती जा रही है । यह तो हिन्दी राष्ट्र-भाषा की तरह राष्ट्रीय पोशाक की अधिकारिणी होती जा रही है । सभी प्रान्तों की कालेज की लड़कियाँ इसी पोशाक को अच्छा समझती हैं पर पढ़ी लिखी नवीन महिलायें भी प्रायः ऐसी ही साड़ी पहिनती हैं । साड़ियों में गुजराती, बंगाली, महाराष्ट्रीय, मद्रासी आदि सभी किनारे और सभी रंग स्त्रियों ने अपना लिये हैं । महाराष्ट्रीय स्त्रियाँ हलके रंग की और सफेद साड़ी तो पहिनती ही हैं पर लुगड़े भी सफेद और हलके रंग के काफी परिमाण में पहिनती हैं । इसी तरह गुजराती स्त्रियाँ गहरे रंग को भी काफी पहिनती हैं और बंगाली किनार को भी पसन्द करती हैं । मारवाड़ी शिक्षित स्त्रियों में तो कुछ भेद भाव है ही नहीं । उनके सामने कोई भी अच्छी चीज़ आने भर की देर है किसी के पहिनावे में उन्हें कोई सौन्दर्य दिखा कि तुरन्त उसे ग्रहण करने की कोशिश करती है । वैसे तो प्रायः मनुष्यमात्र का. स्वभाव है सौन्दर्य और कलासम्बन्धी वस्तुओं की ओर आकर्षित होना और उन्हें प्यार करना । पर स्त्रियों में यह गुणा अधिक पाया जाता है । मारवाड़ी स्त्रियाँ इसे बहुत शीघ्र अपनाती हैं इसे सिद्ध करने की आवश्यकता है। यहाँ पर प्रश्न की गुंजाइश है । कोई यह सन्देह कर सकते हैं कि यदि मारवाड़ी स्त्रियों में सौन्दर्यग्रहगा करने की अधिक शक्ति है तो फिर वे वेषभूषा में इतनी पीछे क्यों हैं ? इसका कारण है माराड़ का वातावरण और अशिक्षा । किसी भी प्रान्त की देहाती और अशिक्षित स्त्री ऐसी ही है । मारवाड़ की बहुत अधिक ठंढ, और गरमी तथा पानी की बहुत कमी भी इसका कारण हो सकती है । वस्त्राभूषण में सौन्दर्य लाने के लिये स्वच्छता की बहुत अधिक ज़रूरत पड़ती है और स्वच्छता के लिये पानी की उतनी ही ज़रूरत है। पुरानी मारवाड़ी स्त्रियों में एक कहावत है । देश छोड़ना वेश नहीं छोड़ना । पर आजकल की स्त्रियों ने इसे भी छोड़ दिया । किसी प्रान्त की स्त्रियों ने अपना वेष नहीं छोड़ा पर मारवाड़ी स्त्रियाँ जो देखती हैं और पसन्द कर लेती हैं उसी को अपना लेती हैं। यह बात बड़ी-बूढ़ी स्त्रियाँ चिढ़ कर कहा भी करती हैं।
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