नारी समस्या डाक्टरी करना, प्रकार ले भी सकता है । इसलिये किसी की मेहरबानी की आशा लगाकर कभी न बैठना चाहिये । मैं तो चाहती हूँ कि स्त्रिया इज्जत के साथ अवश्य ऐसा धन्धा करें जिससे वे किसी की मोहताज न रहें । नौकरी ही क्यों और भी अनेक अच्छे अच्छे धन्धे हैं । यदि हम उद्योग करें तो काफ़ी कमा सकती हैं। स्कूलों में पढ़ाना, आदि धंधे तो बहुत ही सम्मान और इज्जत के हैं । साथ ही छोटे-छोटे धन्धे भी हैं । सीना, कसींदा काढ़ना, रँगना, चित्रकारी, खिलौने बनाना और खाने पीने की चीजें तैयार करना इत्यादि अनेक ऐसे कार्य हैं जिन्हें स्त्रिया बड़े आनन्द से कर सकती हैं । स्त्रिया जब पुरुषों पर इतना विश्वास करती हैं तो पुरुष-समाज भी स्त्रियों पर विश्वास. क्यों न करे । जब तक स्त्रियों को आर्थिक स्वतन्त्रता नहीं मिलेगी तब तक उनका आदर सम्मान नहीं हो सकता । निस्वार्थ प्रेमियों की बात छोड़ दीजिये । साधारण लोगों में बिना स्वार्थ कोई किसी की परवाह नहीं करता । वैसे तो पुरुषों का स्त्रियों से बहुत स्वार्थ रहता है और वे उनकी सुनते भी हैं; परन्तु ज्योंही उनके स्वार्थ को धक्का लगा कि उनकी आँखों का रंग बदल गया । कुछ लोग तो डंडे से भी बात करते हैं । साधारण घरों में देखा जाता है कि बीमारी की हालत में भी स्त्रिया घर का सारा काम करती हैं और पुरुष बीड़ी पीते तथा गप लगाते रहते हैं । इन सारी बातों पर विचार करने से मालूम होता है कि स्त्रियों को आर्थिक स्वतन्त्रता प्राप्त करने के लिये कोई न कोई धन्धा करना चाहिये । इसके बिना वे अपनी स्थिति को सम्हाल नहीं सकतीं ।
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