एक अन्तरंग चित्र डाक्टरनी को बुलायेंगे और उसे सोने की जंजीर, कपड़े सभी कुछ इनाम देंगे !" यह सब बातें बरामदे में खड़ी-खड़ी केशर की मा केशर से कह रही थी और बहू ? बहू अन्दर कमरे में पीड़ा से अधीर होकर छटपटा रही थी । केशर ने कहा- "और मेरा चन्द्रहार कहीं भूल न जाना। . पार्वती-"हाँ, हाँ, तू पहिले ले लेना बेटी ! नौकर-चाकरों को इनाम और ब्राह्मणों को दान बाद में किया जायगा ।” “इतने ही में दाई आ पहुँची और लगी एक के बाद दूसरी पीढ़ी का गुणगान करने । बोली-“यजमान मुझे क्या मिलेगा ? डागदरनीबाई को तो आप लोग क्रसठी पहनाते हैं जिससे आप कुछ भी नहीं करवाते ।" दादी ने बीच ही में रोककर कहा-"अरी, अभी से झगड़ती क्यों है । तुझे भी ग़ज़ी किया जायगा । नाइन भी आकर बोली-"मैं तो वाजबन्द पढिनँगी जजमान ।" "तृ आ गई" जा बहू को जचकी घर में सम्हाल । देग्न · धीरे-धीरे ले जाना उसे बहुत तकलीफ़ हो रही है ।" "अच्छा, अच्छा" कहती और मुम्कुराती हुई नाइन बह के पास गई। "क्या है बहुजी बहुत तकलीफ हो रही है क्या ?" "अरी तु तकलीफ पृछती है इम वक्त । कुछ मत पूछ ।” कहते-कहते बहू की आँखों से झरझर करके सावन भादों की घटा झर पड़ी । “घबराओ मत बहुजी ।" कोमल स्वर में नाइन ने कहा,” “यदि 'वेटा हो गया तो तुम सारा दुग्व भूल जाओगी।" जचकी घर में क्या था ? काली कोठरी ही तो थी । मानो उसी के डर से बहू जान छिपाय अभी तक दूसरे घर में बैठी थी। कहीं से भी प्रकाश या हवा आने का मार्ग नहीं। एक टूटी सी मूंज की रस्सी की खंटिया पड़ी हुई थी । उस पर दो एक बोरिया बिछी थीं । बोरी का ही तकिया लगा था । पास ही में थोड़ीसी मिट्टी बिछी हुई और एक पर एक दो-दो इंटें चुनी हुई रखी थीं। इसी पर बैठकर जचकी होगी । बहु का पहिनने के लिये मैले पुराने कपड़े दिये गये । ओढ़ने-बिछाने का भी वैसे ही । यह सब देखकर बहू को कुछ आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि वह इस दशा से तीन बार गुज़र चुकी थी । दाई ने इटों पर बैठ जाने को कहा, तब बहू कुछ रूठ कर बोली-"अभी से क्यों मुझे वहाँ बिठा कर तँग करती हो, दाई माँ ?” दाई ने कहा-"हैग़न नहीं करती बहूजी- बच्चा अभी हुआ जाता है । तुम ज़रा ईंटों पर बैठ जाओ; नहीं तो बच्चा स्वटिया पर ही हो जायेगा" बेचारी पूरे डेढ़ घण्टे तक बैठी रही । दाई ने कहा-"अब तो बहूजी, बहुत ।
पृष्ठ:नारी समस्या.djvu/५५
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।