एक अन्तरंग चित्र मालती आठ साल की सुघड़, गम्भीर और विनयशील बालिका है । वह एक साफ सुधरे कमरे में बैठी हुई कुछ . कपड़ों की तह करके करीने से रख रही है । पास ही उसकी छोटी बदिन कुसुम बैठी गुड़िया बना रही है। उसका श्रृंगार कर रही है । यह भी बड़ी सुशील है। अभी पाँच साल ही की है। मालती ने गम्भीर भाव से कहा-"क्यों बहिन, बताओ अब के बार अपनी माँ के गुड्डा होगा या गुड़िया ?" - कुसुम आखें मटकाकर हँसती हुई 'गुड़िया' कह बैटी क्योंकि खेलने में उसे गुड़िया से ही अधिक अानन्द मिलता था । वह हँसती हुई प्यार की आशा से बहिन की तरफ देखने लगी किन्तु प्यार के बदले बेचारी के सिर और गाल पर तडातड़ तीन-चार चपते पड़ गई । मुँह फिराकर देखा तो सिर पर दादी बड़ी-बड़ी आँखें निकाले खड़ी थीं। दादी की डरावनी मूर्ति देखकर बहिनें सहम गई और डर से कॉपने लगीं । साहसकर मालती ने कहा, "नहीं दादीजी, मा के तो भैया ही होगा, कुसुम तो अभी नन्हीं है । उसे समझ ही क्या है ? दादीजी तनिक शान्त होकर पास बैठ गई और दोनों नाकों में दो अंगुलिया डालकर कुछ मन्त्र सा पढ़कर दोनों अँगुलिया कुसुम के सामने कर कहने लगी कि इन. दोनों अँगुलियों में से एक को पकड़ो । वह अँगूठे के पास की अँगुली को आगे-आगे करती थीं किन्तु कुसुम ने, जो अभी तक मुँह फुलाये बैठी थी लपककर बीच की अँगुली पकड़ ली । अँगुली पकड़ते ही फिर दादी बिजली की तरह टूट पड़ीं-तडातड़ तीन- चार थप्पड़ कुसुम के माल पर जम गये । -"कलमुँही, तीन तो हैं और चौथी का आवाहन कर रही है । कहाँ समायेंगी इतनी ? मरती भी नहीं एक-दो" कहती हुई दादी तमककर मुँह फुलाये कमरे से बाहर हो गई । मालती आँखें बन्द करके हाथ जोड़कर
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