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नारी समस्या
 

भले ही ऐसा न करते हों; किन्तु प्रायः पति, समय की कमी से नहीं अपितु इस काम को ओछा समझ कर बच्चे को नहीं छूते और बच्चे की माँ पर दाँताकशी करते हैं । ज़रूरी काम में व्यस्त स्त्री, काम छोड़ कर, बच्चे को साफ़ करती है । पति महाशय मुँह फुलाए टुकुर टुकुर देखते रहते हैं। क्या यह स्त्री का अपमान और उसके समय की बरबादी नहीं है ? स्त्री जब दूसरे जरूरी कामों में व्यस्त है और पति फुरसत में बैठा है, तो उसका चाहिये कि स्त्री को न बुलाकर बच्चे की सफ़ाई कर दे। मुझे मालूम है कि पुरुष इन बातों से घबराएँगे क्योंकि ऐसे पुरुषों के लिये हमारे वैयाकरणों ने स्त्रैण की उपाधि पहले से ही निश्चित कर दी है। वे मुझे गालिया भी देंगे कि पतिव्रत धर्म का उपदेश करना तो छोड़ा, उल्टे बच्चों का मल साफ कराने का ही कहने लगी । किन्तु मैं इसमें पाप नहीं समझती । जब स्त्री और पुरुष दोनों फुरसत में हों तब स्त्री करेगी ही; पुरुष का कहना ही नहीं होगा। लेकिन जब वह काम कर रही हो या बीमार हो, तब भी गन्दा काम समझकर पुरुष, स्त्री से ही ये कार्य करवाता है। फिर बच्चे कायदे से होते हैं पुरुष के । इस अवस्था में पत्नी तथा मजदूरिन में क्या अन्तर रहा ? स्त्री को तो दाई के समान बच्चे की साफ़-सफ़ाई करने का और खिलाने-पिलाने भर का अधिकार रहता है। बच्चा जब बड़ा हो जाता है, तब मा पर हुक्म चलाता है । माँ ही उसका पाखाना धोती है, उसके लिये बिस्तर कर देती है । है न उल्टी रीति? जहाँ बच्चे का बड़ा होने पर मा की सेवा करनी चाहिये वहाँ बिना किसी संकोच के लड़का मा की चिन्ता न कर, माँ के सामने मैले कपड़े फेंककर बालों में तेल-कंघी कर बाबृ बन दोस्तों में चला जाता है । क्या यह माता का अपमान नहीं ? पुरुष बिना कुछ मागे पति-पुत्रों की सेवा तन-मन से करते जाने की शिक्षा स्त्री का देना चाहता है । जहाँ स्त्री इसके आगे बढ़ी कि वह समाज की अशांति का कारण बन जाती है । स्त्री कहीं अपने को बड़ा न समझने लग जाय, इसीलिये पुरुष उसे उच्च शिक्षा दिलाते भी डरता है । उस स्त्री से हम पुरुषों के समान कलाकार बनने की आशा कैसे कर सकते हैं ?कलाकार कभी बन्धन पसन्द नहीं करता । और न उसे कभी बन्धनों की परवाह ही रहती है । इस घर की रानी और मालकिन स्त्री पर बन्धन तो अनेक हैं; किन्तु अधिकार एक नहीं । पति, बच्चों और धन-दौलत पर उसका अधिकार रहना तो दूर अधिकतर उसका अपने खाने और पहिनने पर भी अधिकार नहीं रहता; वह भी उसे मालिकों की इच्छा से ही प्राप्त होता है ।

मनुष्य मनुष्य को खरीद सकता है । मैं इसे बुरा नहीं भी मानती । परन्तु पैसों या