हमारी विवाह-प्रथा 1 जातीं एवं उन पर अनेक अत्याचार किये जाते हैं विवाह शुद्ध प्रेम पर आश्रित न रहकर स्त्रियों की गुलामी का एक साधन बन गया है । स्त्रियों की वैवाहिक गुलामी बहुत कुछ उनकी आर्थिक परतन्त्रता पर अवलंबित है । विदेशों में जहाँ स्त्रियों को आर्थिक स्वतन्त्रता है वे विवाह रूपी पिंजड़े में कैद नहीं होना चाहती, विवाह के तंग दायरे में जीवन में उदारता, भावुकता, विशुद्ध प्रेम, नहीं मिल सकता, इस विचार के लोग विवाह को आडम्बर मानते हैं। ऐसे विचार रखने वालों की दो श्रेणियों हैं । एक तो विलासिता प्रिय और दूसरे आदर्शवादी । पहिली श्रेणी के लोगों के सम्बन्ध में विशेष विचार करने से काई लाभ नहीं । किन्तु दूसरी श्रेणी जो स्वतन्त्र प्रेम में आदर्श देखती हैं और प्रेम ही का सर्वस्व मानती हैं उस पर विचार करना जरूरी है। मैं भी मानती हूँ कि प्रेम में शक्ति है स्वास्थ्य, सौन्दर्य और सुख है । प्रेम में जीवन है । वह अदभुत अनुपम आनन्ददायी है । हमारी भाषा में वह स्वर्ग है, ईश्वर है । उसके बिना मानों जीवन शुष्क है, बेकार है, मुदी है । हां प्रेम में केवल सुख ही सुख नहीं है, मीरा के वचनानुसार:- जो मैं ऐसा जानती, प्रेम किये दुख होय । नगर ढिंढोरा पीटती, प्रेम न करियो कोय || वह दुख का घर भी है। यह बात अवश्य है कि प्रेमी को प्रेमी द्वारा कठोर वियोग और अपमान मिलने पर भी उसके हृदय में धुंधलीसी प्रेममूर्ति अवश्य रहती है 'उसी का वह अपनी कल्पना द्वारा परिमार्जित करता रहता है और उसीके सहारे जीवन नैया को आगे ढकेलता रहता है। किन्तु इसमें विवाह कब बाधक होता है । जिससे प्रेम हो उसीसे विवाह किया जावे । और यदि विवाह की अवस्था ढलने तक भी कोई ऐसा प्रेमी न मिले तो गुगा रूप में अनुकूल व्यक्ति का पति-पत्नी रूप में प्रेमी बनाया जाय और प्रेम वहाँ पर केन्द्रित किया जाय अयोग्यता साबित होने पर ईश्वर का लक्ष्य किया जाय । विवाह के बाद कोई व्यक्ति मनोनुकूल प्रेमी मिलने पर भी भाई, बहन, मित्र आदि के समान पवित्र प्रेम रक्खा जा सकता है। प्रेम की पवित्रता की दुहाई देकर विवाह न करने की वृति मेरो दृष्टि में तो कारी उच्छंखलता है । पारिवारिक जीवन व्यक्तिगत विकास के लिये प्रथम सीढ़ी है। परिवार की सुख शान्ति के लिये उनके मुखिया को सेवा, त्याग, तपस्या, बलिदान, परोपकार सभी गुणों का उदारता पूर्वक अपनाना पड़ता है और परिवार के प्रत्येक सदस्य में उसे वे गुण भरने का पवित्र प्रयत्न करते रहना होता है । जिस परिवार में सत्य का पालन, बड़ों का आदर, अतिथि सत्कार, छोटों पर प्यार,
पृष्ठ:नारी समस्या.djvu/१२९
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।