अतीत और वर्तमान स्त्री और पुरुष एक दूसरे के अभाव के पूरक हैं । गृहस्थ की गाड़ी के इन दोनों पहियों को समान रूप से पुष्ट होना चाहिये । और फिर आज के युग में तो कहना ही क्या जब कि अन्य देशों की स्त्रिया घर और बाहर सर्वत्र पुरुषों के कन्धे से कन्धा भिड़ाकर कार्य कर रही हैं। इतना ही नहीं कुछ क्षेत्रों में उनसे. भी आगे बढ़ना चाहती हैं | राजस्थान और उदयपुर के इतिहास को सबसे अधिक गौरव प्रदान करनेवाली भी यहाँ की स्त्रिया ही थीं। यों तो देश के अनेकों भागों में बड़े-बड़े युद्ध हुए, वीरों ने बलिदान किये, पर राजस्थान के बलिदान का नाम सबसे आगे आता है । उसका कारण यहाँ की महिलाओं की वीर भावना और साहस भरी कृतिया हैं । जो नारिया पति और पुत्र का युद्ध में भेजने के समय उत्सव मनाती थीं, जो नारिया युद्ध भूमि से आये हुए पति को मृतवत् मानकर प्राण त्याग देती थीं, जो वीरांगनाएँ न केवल अग्नि में जल कर ही जौहर दिखाती थीं बल्कि युद्ध भूमि में पतियों के साथ लड़ती हुई शत्रुओं को अपने जौहर से चकित कर देती थीं उन वीर पुत्रियों वीर बधुओं, और वीर माताओं की समाधि की धूलि का एक कण भी मस्तक पर चढ़ाकर कौन व्यक्ति अपने भाग्य को न सराहेगा ? राजस्थान का साहित्य ऐसी ही वीर सतियों के रक्त से लिखा गया है । किन्तु ये अतीत की बातें हैं । निष्ठुर वर्तमान बाख बँद कर लेने पर भी पलकों को चीर पुतलियों पर प्रतिबिंबित हो ही जाता है । मैं किसी समाचार पत्र में पढ़ रही थी कि अमेरिका में अस्सी हजार स्त्रिया पिछले सप्ताह फौजी कार्यों के लिये भरती हुई हैं जो दस लाख सैनिकों की व्यवस्था करेंगी। मुझे गर्व का अनुभव हुआ किन्तु दूसरे ही क्षण वह गर्व विषाद में बदल गया। मैंने सोचा, यदि राजनीति अथवा अन्य कारणों से भारत का युद्ध में सम्मिलित होना पड़े तो क्या हम भी इसी प्रकार स्त्रियों की कोई सेना
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