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दो शब्द

श्रीमंत कमलाबाई किबे के भूमिका लिखने के पश्चात् मेरे लिखने के लिये बाकी कुछ नहीं बचता। सच तो यह है कि 'नारी समस्या' जैसी पुस्तक पर, एक विदुषी नारी का मत ही अधिक उपादेय है।

श्रीमती राधादेवी गोयनका के ये विचार, पुस्तकीय अध्ययन के परिणाम मात्र नहीं हैं। धनिक मारवाड़ी समाज में पर्दा-प्रथा का बहिष्कार का जो आन्दोलन, और समाज में अप्रिय होने का जो खतरा, उन्होंने उठाया, और उसमें जो अनुकूल-प्रतिकूल अनुभव उन्हें हुए, यह पुस्तक उन अनुभवों का चित्रण है। अतः उनका लेखन, समाज के देवी-देवताओं के लिये, भले ही क्रिया की प्रेरणा बने, किन्तु उनके स्वयं के लिये यह लेखन उनकी क्रियाशीलता का अनुगामी मात्र है।

वे इस समय ७ पुत्र-पुत्रियों की माता हैं। उत्तरदायित्व पूर्ण संघर्षमय जीवन है। उनके बड़े पुत्र श्री मदनलालजी कारबार का संचालन करते हैं। किन्तु राधादेवीजी की अध्ययन प्रियता है कि वे अभी भी परीक्षाओं में बैठ रही हैं। अपने बच्चों की ऐसी माता ने यदि इस पुस्तक की रचना की है, तो अवश्य यह सोचकर ही कि उनके भी पुत्रवधू हैं, पुत्रियां हैं, और उन पर परिवार का भारी उत्तरदायित्व भी है। गौरव बात यह है कि उनके इन प्रयत्नों में, उनके पति श्रीयुत किशनलालजी गोयनका का सतत प्रोत्साहन है।

लेखन-यात्रा में यह पुस्तक उनका प्रथम प्रयोग है, जिसमें उनकी लगन प्रतिबिम्बित हुई है। मैं इस कृति पर अपनी शुभाकांक्षा व्यक्त करते हुए, प्रतीक्षा करूंगा कि उनके लेखन का स्तर लगातार उन्नत तर होता जायगा। वे इस वर्ष कांग्रेस की ओर से मध्यप्रान्त धारा सभा की 'एम. एल. ए.' हो गई हैं। मेरा निवेदन है वे राष्ट्र-कार्य और स्वाध्याय के बीच सामञ्जस्य स्थिर कर ले जायेंगी; वे अध्ययन और जन-सेवा की लाँबी यात्रा में राजनीति के कारण विघ्न न पड़ने देंगी।

-माखनलाल चतुर्वेदी

कर्मवीर कार्यालय
खण्डवा, सी. पी.
७-३-४६