पृष्ठ:नारी समस्या.djvu/११०

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नारी-समस्या ने ऐसा कोई नियम नहीं बनाया है कि निराधार स्त्रियों को क्या करना चाहिये और न उनके लिये शिक्षण की ही कोई योजना है जिसमें वे सीख पढ़कर समाज, राष्ट्र या साहित्य की सेवा ही कर सकें अथवा अध्यापिका या डाक्टर आदि बन कर स्वावलंबी होकर अपना तथा समाज का कुछ भला कर सकें । आज कितने ही भाई अपनी स्त्रियों तथा लड़कियों का घर ही में अध्यापिका द्वारा पढ़ाना चाहते हैं, कितनी ही कन्या पाठशालाओं में अध्यापिकाओं की मांग रहती है लेकिन चाहिये वैसी अध्यापिका नहीं मिलती । हमें चाहिये हिंदी भाषी और मिलती है बंगला, गुजराती, मराठी भाषी । वे भिन्न भाषा भाषी होकर भी बे पढ़े अन्य भाषा पढ़ाने का दावा करती हैं । अध्यापक चाहिये तो १५. या २० रुपये में मिल जाता है और अध्यापिका ३० या ४० में बड़ी कठिनाई में मिलती है । हमारे समाज में योग्य महिलाओं की बड़ी कमी है । यद्यपि हमारे समाज में लाखों महिलायें बेकार पड़ी हुई किसी तरह अपनी जिंदगी के दिन पूरे कर रही हैं । इतना ही नहीं वरन अपने रक्तमय विषैले उसासों से इस समाज रूपी वृक्ष को झुलसा रही हैं । कहने का मतलब यह है कि हमारे पास ज्ञान प्राप्त करने का, कला कौशल सीखने का सभी प्रकार का सुभीता है। सिर्फ बुद्धि को ही थाड़ा प्रेरित करने की ज़रूरत है । बहुत दिनों में रुढ़ियों की गुलामी में जकड़े, रहने से हमारी बुद्धि पर जंग चढ़ गया है। अब हम उसे विद्या रूपी शाण पर चढ़ा कर तेज़ करेंगे । तभी हम संसार में अपने आपको और समाज को चमका सकेंगे। तभी संसार हमारी ओर आश्चर्य से देखेगा। जो हमें हास्यास्पद समझते हैं वे ही फिर हमें आदरणीय समझने लगेंगे। हमारे ही साथ हमारी संतानों का सवाल लगा हुआ है । बच्चे की सच्ची पाठशाला और सच्चे शिक्षक हम ही हैं । हम जो कुछ करते हैं उसे बच्चा बारीकी से देखता है और अपने जीवन में उतारता है । वह हमें लड़ते झगड़ते, झूठ बोलते, संकुचित वृत्तिवाली, देश समाज से मुख माड़े और कलाहीन देखता है तो वह भी वैसा ही होता जाता है । हम समझते हैं कि बच्चे स्कूल जाकर अच्छी अच्छी बातें सीख जावेंगे लेकिन हम देखते हैं कि घर में रहनेवाले बच्चों पर स्कूल याने किताबी ज्ञान का कुछ भी असर नहीं होता। आगे जाकर हमारी ही प्रतिछाया उनमें झलकती है। बच्चों को हम जैसा बनाना चाहते हैं वैसे ही हमको स्वयं बनना चाहिये । यदि आप घरकी साफ सफाई रखेंगी तो बच्चे भी स्वच्छता सीखेंगे और वे भी घरमें कचरा करना पसंद न करेंगे । कहने के लिए तो समाज के कर्ताधती और नियम बनाने वाले