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नाट्यसम्भव।

आपके इस उपकार को मानेगा।

नारद । यह उत्तर तुमने प्रतापी बलि के योग्यही दिया।

बलि । और यह यातनी हम जानते हैं कि आपही की अनन्त कृपा के कारण दैत्यकुटपावन हमारे पितामह प्रल्हादजी ने जन्म लिया था।

नारद । तो तुम हमारे उम उपकार को नानते हो? नमुचि। (आपट्टी आप ) बस, अब मतलब निकला चाहता है।

बलि। अवश्य । और हमारे वंश में जो होगा, आपकी इस कृपा को कभी न भूलेगा।

नारद। तो हमारे उम उपकार का इस समय तुम कुछ प्रत्युपकार कर सकते हो?

नमुचि। (आपही आप ) अथ इतनी भूमिका क्यों?

बलि। आधा कीजिए।

नमुचि। (आपही आप) ऐसी उदारता से बुरा परिणाम होना चाहता है।

नारद। जिस शांति हमने इन्द्र के हाथ मे कयाधु को छुड़ाया था, उसी भांति आज तुम्हारे हाय से हम इन्द्राणी को छुड़ाया चाहते हैं। इन्द्र से तो बदला तुमने चुकाही लिया, फिर व्यर्थ अबला को अवरुद्ध कर रखना तुम्हारे जैसे प्रतापी वीर के लिए शोभा नहीं देता।