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नाट्यसम्भव।

कियो निकास काम मनमानो, मोह यारुनी पागे।
कहा होइगो, सो नहिं जानत, या सुपने ते जागे॥
जगतजाल तें होइ लिवरो, मिलै सुगति टुक मांगे।
असरन सरन गुबिन्द चरन तें,जो अनुरागहिलागे॥

(दोनों कान लगाकर सुनते हैं)

नमुचि। देखिए! इस निर्गुण भजन में स्वार्थ की बातें कितनी भरी हुई हैं ?

बलि। तथापि देवर्षि का उपकार इन वंश पर जैसा है, उसके लिए ये सर्वथा पूजा करने योग्य हैं। नमुचि। (आपही आप) ऐती दुर्वद्धि ने तुमको घेरा है तो तुम अपना कोई न कोई काम आज बिना बिगाड़े नहीं रहते।

(द्वारपाल आता है)

द्वारपाल। ( आगे बढ़कर) महाराज की जय होय! हे प्रभू द्वार पर देवर्षि नारद उपस्थित हैं।

बलि। उन्हें अति शीघ्र आदर से लेआव।

द्वारपाल। जो आज्ञा।

(जाता है और नारद के साथ तुरन्त आता है)

द्वारपाल। देवर्षिवर! यह देखिए, दैत्यराज आपके दर्शने के लिए किस उत्कंठाते आगे बढ़ रहे हैं।

नारद। तूने सत्य कहा, वज्रदंष्ट्र! (मन में) अहा! देवताओं का मानमर्दन करनेवाला दैत्यकुलभूषण बलि