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नाट्यसम्भव।
सुनाने के लिए तुम्हें हम अपनी शतनी देकर पुरस्कृत
नमुचि। (शतघ्री लेकर अभिवादन करता हुआ) जय होय दैत्येश्वर की। प्रभो! आप जैसे प्रतापी नीर अपने अनुयायी वीरों का उत्साह इसी भांति बढ़ाते हैं।
(नेपथ्य में वीणा की झनकार)
(बलि और नमुचि कान लगा कर सुनते हैं)
बलि। यह तो देवर्षि नारद की बीणानी प्रतीत होती है।
नमुचि। जी हां! किन्तु इस समय इनका यहां आना हमें तो नहीं सुहाया।
बलि। यह क्यों।
नमुचि। इसलिए कि यह देवताओं के पक्षपाती हैं, अतएव देवर्षि कहलाते हैं, सो इस समय इनका यहां आना स्वार्थरहित कदापि न होगा। वलि। यह ते तुम ठीक कहते हो, किन्तु इनके तपोबल के आगे त्रैलोक्य में कौन ऐसा है जो इनका अनादर कर सके!
नमुचि। यही तो कठिनाई है।
(नेपथ्य में चीन के साथ खम्माच रागिनी में)
समुझ मन कहा होइगो आगे।
अबहीं तो समुझत नहिं एकहु, एरे मूढ़ अभागे॥