सबदेवता। क्योंकि नाथ ! आपही के मन बहलाने के लिए आज यह सभा की गई है कि जिसमें आपका चित्त प्रसन्न हो और हमलोगों के नेत्र सुफल हो।
(नेपथ्य में)
राग ईमन।
को गुनगाइ सकै तुव माया।
तीनलोक हिय ध्यान धरै नित पाइ अपूरव काया॥
जापै ढरी करी तेहि परो करि निज हाथन छाया।
नौमि भारती भापा बाती सरस्वती विधिजाया॥
इन्द्र। अहा! नाम लेतेही भरतमुनि आ पहुंचे (चौंक कर प्रसन्नता से) ऐं ऐं !! हमारी दाहिनीभुजा क्यों फड़की?
वृहस्पति। हे देवेन्द्र! अब दुर्दिन की अंधेरी रात कट गई। केवल सुखसूरज के उदय होने की देरी है।
सब देवता। बहुत देरी नहीं है, बहुत देरी नहीं है।
(दमनक के सङ्ग वीणा लिए भरतमुनि आते हैं, उन्हें देख ५ इन्द्र के सहित सब देवता उठकर प्रणाम करते हैं और वृहस्पति के समीप उनके वैठने पर सब बैठते हैं। भरत के पीछे दमनक खड़ा होता है)
इन्द्र। मुनिवर। आपका दर्शन कर आज स्वर्गवासी जन अतिशय कृतार्थ हुए।
भरत। हे पुरन्दर! अब तुम अपने मन से खेद दूर करो।