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नाट्यसम्भव।
सिद्ध। कहो जाय कोउ ढूंढ़ैं बन बन सुरनायक को।
यक्ष। बिना इन्द्र के या सिंहासन के लायक को ॥
गुह्यक। आवत ह हैं घरह धीर अवहीं सुरनायक।
विश्वेदेव। जिनको सहज सुभाव सबै सुखमा-परिचायक॥
अग्नि। यज्ञभाग-भाजन मुरेस जीवन-सुख-सागर ।
वरुण। कित दिलमाये विसरि नेह देवन को नागर॥
धन्वतरि। अवला को बल पतिहि सोऊया विधि अकुलाने।
कुवेर। होनहार बलबान मिलै कछु नहिं पछिताने।
जारि छार करि डारहु दानव-धन समुदाई।
चन्द्रमा। सीतल सुरपुर करहु स्वर्ग की श्री घर लाई॥
अश्विनीकुमार
नसै विरह को रोग शतक्रतु को सबभांतिन।
कर बहुरिहन महामाद मंगल जुरि पांतिन॥