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नाट्यसम्भव।

आज का दिन भी बीत गया। नजानै प्यारी बिमा कितने दिनों तक याही जाग जाग कर रात काटनी पड़ेगी। हा ! (उठ कर) तो अब चलें,सभा का समय आ पहुंचा।

(प्रिय बिछोह की भांति इत्यादि पढ़ता हुआ जाता है)

(परदा गिरता है)
इति छठवां दृश्य।




सातवां दृश्य।
(स्थान कल्पवृक्षवाटिका)

(स्फटिक के चौतरे पर जड़ाऊ सिंहासन बिछा है और उसके दोनो बगल रत्नों की दो चौकियों पर दाहिनी और वृहस्पति और बाई ओर कार्तिकेय बिराजमान हैं तथा दोनो पही कतार बांधे हुए देवगण हाथीदांत की कुर्सियों पर बैठे हैं)

विद्याधर। अहो अबै लगि सभामाहिं सुरराज न आये।

किन्नर। सचीबिरह के दुसह ताप तपिकित भरमाये॥