करके अपनी अलाय बलाय हमारे सिर से फेर लीजिये। हाय ! हाय ! यह विरह का बोझा कौन ढोताफिरैगा? हम दब मरेंगे,यह हमसे न सम्हलैगा।
इन्द्र । (हँस कर) क्या यह लकड़ी के वामे ने भी गुरु तर है?
दमनक । गुरुवर नहीं तो शिष्यवर अवश्य है।
इन्द्र । तो ले इस झंझट से तेरा छुटकारा होगया।
दमनक । (प्रसन्त होके उछल कर) आपकी जय हाय अब हमारे जी में जी आया (गया)
इन्द्र । अरे दमनक ! अरे यह तो भागा। अहा ! कैसा सूधा बालक है। महर्षियों के स्वभाव भी कैसे उदार और गंभीर होते हैं कि ऐसे ऐसे जड़ के सङ्ग भी माथा खाली करते करते अन्त में उसे चैतन्य बना देते हैं। (ठहर कर) अरे अभी तक इसकी बातों से ध्यान बंटा हुआ था,पर अब फिर वही उदासी सामने घूमने लगी।
(नेपथ्य में)
राग गौरी।
कमलवन सांझ होत कुम्हिलाने।
बिरहताप पावन की सुधि करि चकवा अतिअकुलाने॥
बिकल भये मधुकर रस कारन पंकज माहि समाने।
प्रिय बिछोह की भांतिदुसहदुख और नाहिं जियजाने॥
इन्द्र । हा ! यह किसने कटे पर नोन छिरका? उसने तो अच्छा गाया,पर हमें तो यह चोट पर चोटसी लगी।