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नाट्यसम्भव।

ही इसकी जड़ तक खोद कर फेंक देंगे। इसलिये इस व्याधि से छुटकारा पाने में अब देर न समझिए।

इन्द्र। (दमनक की ओर देखता हुआ मन में) यह तो बड़ा हँसोड़ या ढीठ जान पड़ता है और उसके आघरण मे ऐमा प्रतीत होता है कि भरतमुनि के लाड़ प्यार ने इसे और भी चौपट कर दिया है। परन्तु भोला भी ऐसा है कि निडर होकर हमसे सीधी २ बातें कर कहा है। क्योंकि इसे अभी तक यह ज्ञान नहीं है कि किससे किस रीति से बातें करनी चाहिए। जो होय, पर घोड़ी देर इमकी बातही से जी बहल जायगा। (प्रगट) क्या मुनिवर आरहे हैं?

दमनक। वही बात तो कहा सुजान। (मनमें) फिर क्यों पूक्त बारंबार॥

इन्द्र। (हँसकर) वाह! जैसा विचित्र तू है, वैसीही तेरी कविता भी अद्भुत है। (मन में ) अच्छा ! थोड़ी देर भरत नहीं तो इस जडारन ही से अपना माथा खाली करें। जान पड़ता है कि भरतमुनि ने जानबूझ कर इस उजड को यहां भेजा है कि जिससे हमारा जी यहले (प्रगट) क्योंरे दमनक! तू आशु कवि कब से हुआ

दमनक। आपको अभी तक यह विदित ही नहीं था? अरे! संगीतविद्या तो गुरूजी ने घोल कर पिलाही