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नाट्यसम्भव।
पांचवां दृश्य।
परदा उठता है।
(स्थान आकाशगङ्गा का तट)
(कल्पवृक्ष के पत्तों के ऊपर फूलों का आसन बिछा है और उसके सामने वीणा लिए भरत मुनि बैठे हैं, तथा मृदङ्ग लेकर दमनक और रैवतक उनके पीछे बैठे हैं। भरतमुनि के पास पूजा के लिए फूल और फल रक्खे हैं)
भरत। (बीन के तारों को लेह कर) देखो बेटा। तुम दोनो अब सावधान होकर मृदङ्ग बजाना, हम सङ्गीत आरम्भ करते हैं।
दोनो। जो आज्ञा (मृदङ्ग पर थाप जमाते हैं)
भरत। (गाते हैं) राग झझौंटी।
कमलदल-चरन ध्यान करिये।
महरानी वानी गुन गुरिमा हिये आनि धरिये॥
संदासनेह सने हंगकोरनि चितै मातु ढरिये।
हंसवाहिनी देवी! मेरी रसना अनुसरिये॥
(छप्पय छंद-राग जैतश्री)
नौमि कमलदलमाल भाल विधुभूखन धारिनि।
सदा दीनजन हेरि सबै विद्या उर कारिनि॥
स्वेत वसन परिधान स्वेत सुखमा तन छाये॥
स्बेत विभूखनरासि हास तन मृदु मुसुकाये।