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नाट्यसम्भव।
(भरतमुनि का एक और से प्रस्थान)
दमनक। पहिले तो हम फल तोड़ तो खायंगे पीछे फूल बीना जायगा।
रैवतक। (फूल बीनते २ हंसकर ) पर हाथ धोने के लिए जल कहां से आवैगा?
दमनक। दुत्तेरा बुरा होय। कैसी बाधा डाल दी! छीः!
रैवतक। लो! चटके न! वहीं न फल लेते चलो, मजे में आकाशगङ्गा के किनारे बैठकर दोनो जने भोग लगावैंगे।
दमनक। (मन में) देखो वचा की धूर्तता। अपनी टिक्की पहिले जनाता है। पर हम तो फल जूठे करके इसे अंगूठा दिखा देंगे (प्रगट ) यह तुमने बहुत अच्छा कहां।
(फूल और फैल तोड़ता है)
रैवतक। लो! हमने तो एक टोकरी फूल बीन लिए।
दमनक। देखो हमने कितनी जल्दी तुमसे दूना फूल भी बीना और फल भी तोड़ा।
रैवतक। तुम्हारी क्या बात है, तुम तुम्ही है।
दमनक। भला २ अब चलो सिद्धजी।
(दोनो जाते हैं)
परदा गिरता है।
इति चौथा दृश्य।