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नाट्यसम्भव।

रेवतक। क्यों दमनक! क्या यह बात सच है?

दमनक। इसमें झूठ क्या है? वेदही में लिखा है कि 'स्वर्गकामो यत्' अर्थात् स्वर्ग के उस प्राप्त करने की इच्छा हो तो यश करना चाहिये।

भरत। स्वर्ग का पाना दाल भात का गस्सा नहीं है। न जाने कितने लोग बराबर यज्ञ करते २ मर मिटते हैं पर उनमें से बिरलेही स्वर्ग में आते हैं। जो केवल यज्ञही करने से स्वर्ग प्राप्त होता तो यहां रहने के लिए किसीको दो अंगुल भी स्थान न मिलता। इतनी कसामसी या भीड़भाड़ होती कि लोग घबराकर यहां से भी कहीं दूसरी जगह भागने की इच्छा करते। और फिर अप्सराओं काली ऐसा टोटा पड़ जाता कि सैकड़े पीछे भी एक २ अप्सरा न पड़ती। और हमारे सङ्कोत औ साहित्य की महिमा तो देख कि तू इसी देह से नन्दन वन की हवा खाने आया है। कोई यज्ञ करने वाला पुरुप सी सदेह यहां की सैल करने आया है?

दमनक। (चारो ओर देख कर) हमें तो यहां कोई भी नहीं दिखाई देता। तो क्या वेद झूठा है?

भरत। दुर मूर्स! ऐसी छोटी बात सुख से निकालता है?

दमनक। तो फिर क्या समझैं?

भरत। इसे यों समझ कि जो लोग बिना किसी कामना