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नाट्यसम्भव।

देवता शाप वाप देदेगा तो हमलोग भसम होजायंगे।

दमनक। (डर कर) ऐं ऐं! शाप! हाय वापर मरे। क्यों गुरूजी! यह बात सच है? यहां भी शाप का बखेड़ा लगा है? (मन में) हम तो जानते थे कि मुनियों के आश्रम मेंही शाप का पाप घुसा है, पर नहीं, यहा भी वही उपाधि लगी है।

भरत। (हँस कर) रैवतक सच कहता है। देख, अभी तक तू भला चङ्गा है यही आश्चर्य मान।

दमनक। (मृदङ्ग पटक कर) लीजिये गुरुजी! हमें अभी अपने घर पहुंचा दीजिये। हम स्वर्ग की सैर से धाये। अब तो जीते जी कभी भूल कर भी स्वर्ग में पांव न रक्खैंगे। हमने झखमारा जो यहां आये। ऐसे स्वर्ग से तो हमारी टूठी फूटी मड़ैयाही अच्छी है कि जहां शापताप का तो प्रपंच नहीं है। हमें ऐसा स्वर्ग नहीं। चाहिये (अपना कान ऐंठता है)

रैवतक। देखो! फिर कभी अप्सराओं की ओर आंखें फाड़ फाड़ कर मत देखना।

दमनक। नहींजी जो भया सो भया। हम क्या इतने मूर्ख हैं कि बार बार ठोकर खायंगे। (मन में) हमने सुना है कि स्वर्ग की मत वाली अप्सराजन सुन्दर युवा पुरुषों को देखकर मोहित होजाती हैं, पर हमारा क्या खाक रूप है, जो वह इस पर रीझैंगी?