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नाट्यसम्भव।

सैर करा दें, जिसमें भागने न पावे। (प्रगट) अरे दमनक! यह कैसा है रे!

दमनक। हां गुरूजी! यहा मीठा है। अहा! कैसा सुन्दर स्वाद है। ऐसा फल तो कभी सपने में भी नहीं खाया था।

भरत। (हँस कर) अच्छा आज तुझे भी नन्दन वन की बहार दिखावेंगे। वहां ऐसे २ फलों का जगल है, जितना चाहे तोड़ लीजो।

दमनक। (प्रसन्न होकर) अहा! धन्य गुरूजी! (चरण छूना चाहता है)

भरत। (पीछे हटकर) अरे जूठे हाथ से यह क्या करता है?

दमनक। (हाथ जोड़कर) भूल गये, गुरुजी! क्षमा करियेगा। हां! नन्दन वन की ओर कब चलियेगा?

भरत। संध्या पूजा करके। परन्तु वहां तुम परिश्रम भी करना पड़ेगा।

दमनक। (मन में) यह "परिश्रम" साढ़े साती सनीचर की भांति हमारे पिंड पड़ा है। यह क्या बिना मान लिये पीछा छोड़ेगा? (ठहर कर) पर मीठा फल जो ढेर सा मिलेगा।

भरत। चल! आश्रम में होम होने लगा, वह धुआँ उठता है (अँगुली से दिखाते हैं)

दमनक। जो आज्ञा (हाथ धोकर लकड़ी और फूलों की