तीसरा दृश्य।
(रंगभूमि का परदा उठता है)
(सिर पर लकड़ी का बोझा और हाथ में फूलों की डाली। लिए भरत मुनि के दो चेले आते हैं)
दमनक। (पृथ्वी में लकड़ी का बोझा और फूलों की डलिया पटक कर) शिव शिव। बोझा ढोते २ जान निकल गई। (सिर पर हाथ फेरता है)
रैवतक। (बोझा उतार कर) क्यों भाई! चांद गंजी होगई। क्या! ऐं।
दमनक। (अंगड़ाई ले और गर्दन पर हाथ फेर कर) चलो जी, वाह! हमारा दस फूल गया और तुम्हें ठट्ठा सूझा है।
रैवतक। अजी! तपोवन में रहकर ऋषि मुनियों की सेवा करना और सांप का खिलाना बराबर है।
दमनक। तो तुम्हीं रात दिन गाड़ी के बैल की तरह जुते रहो। हम धाए ऐसे धंधे से। रात दिन जूझते रहे। तो तुम भले और हम भले। पर जरा भी हाथ पैर ढीला किया कि चट गुरूजी लाल २ आंखें कर घोंटने उगते हैं। क्यों जी! इतना अंधेर! ऐं! भिक्षा मांग कर सबकी सब सामने ला धरो उसमें! से जो कुछ मिला तो जलपान या नहीं तो कोरा उपास।