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नाट्यसम्भव।


का विचार कैसा उदार और प्रशंसनीय है? परन्तु यह रूपक किसका बनाया है?


पारिपार्श्व़क। उन्हीं श्रीमान् के परमस्नेही हिन्दी भाषा के कवि तथा लेखक पण्डित किशोरीलाल गोस्वामी जी ने रचा है।


सूत्रधार। (हर्ष से) क्यों न हो! जैसे सुयोग्य और गुणग्राही श्रीमान् राजा साहब हैं वैसेही रसिक और सुलेखक श्रीगोस्वामीजी भी हैं। बस फिर क्या पूछना है? सोना और सुगन्ध! (घूमकर) इसमें सन्देह नहीं कि इसका अभिनय देखकर रसिकजनों का मन मोहित होगा और इस विद्या में लोगों की श्रद्धा भी होगी (सामने देखकर) अहा! देखो श्रीमान् राजा साहब महोदय अपने दलबल सहित रङ्गभूमि में पधारे, तो चलो हमलोग भी अपना २ काम देखैं।


पारिपार्श्वक हां! चलो। अब विलम्ब केहि काज!

(दोनों गए)

इति प्रस्तावना।