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नाट्यसम्भव।

हैं तो कृपा कर हमको भी स्वर्ग में दो अंगुल जगह दीजिए।

इन्द्र। ऐसाही होगा। पर अभी तू कुछ दिन मुनिवर भरताचार्य्य के पास रहकर संगीत और साहित्य विद्या में परिपक्व होले, फिर मर्त्यलोक छोड़ कर तू यहाँ आवेगा और गंधर्वों का राजा होकर सदैव नन्दन बन में अप्सराओं के साथ विहार किया करेगा। (रैवतक की ओर उंगली उठा कर) और यह तेरा सहचर रैवतक भी देवता होकर तेरा सहचरही बना रहैगा।

दमनक और रेवतक। (प्रणाम करके) सुरेश्वर की जय होय।

इन्द्र। (भरत से) आज जैसा अद्भुत कौतुक आपने दिखलाया, इनके रहस्य को कृपा कर अब प्रगट करिए कि क्योंकर शची की प्राप्ति हुई?

भरत। सुनिए। भगवती वागीश्वरी से नाट्यविद्या को पाकर हम इसी सोच विचार में उलझे हुए थे कि अब कौनसा रूपक दिखला कर इन्द्र को प्रसन्न किया जाय। इतनेही में हमने आकाश मार्ग से देवर्षि नारदजी के साथ शची को उतरते हुए देखा। बस फिर क्या था, हमने देवर्षि से अपना अभिप्राय कहा, उन्होंने भी उसे स्वीकार किया। फिर हमने बलि