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नाट्यसम्भव।

सो भगवती की दया ने हमलोगों के मन चीते होगए।

(गाती हैं)

राग कलांगड़ा।

भागतें पायो सुदिन सुहायो।
कृपा कटाछनितें देवी के भयो अहा, मनभायो॥
फलै वही वरदान वेगि, जो निज मुख बानी गायो।
सहित सनेह चहूंदिसि घर घर बाजहिं चहुंरि बधायो

(नेपथ्य में)

भगवती भवानी और भारती की दया से ऐसाही होगा।

(सब कान लगा कर सुनते हैं और दमनक तथा रैवतक के साथ भरतमुनि आते हैं। इन्द्रादिक देवता उठकर प्रणाम करते हैं और नारद के बगल में भरत के बैठने पर सब अपने स्थानों पर बैठते हैं। भरत के बगल में दमनक और रैवतक खड़े होते हैं)

भरत। कहो, देवेश! अब और कौनसा खेल दिखलाया जाय।

इन्द्र। मुनिराज! आप धन्य हैं। आपने आज जैसा सजीव नाटक दिखलाया, उसका प्रत्यक्ष प्रमाण हमारे वाम भाग में सुशोभित है। इससे बढ़कर और कौन खेल होगा?

सब देवता। कोई नहीं, कोई नहीं।