प्राचीन हस्तलिखित हिंदी-ग्रंथों की खोज [सन् १९४१-४३] अठारहवीं त्रिवर्षी (सन् १९४१-४३) में प्राचीन हस्तलिखित हिंदी- ग्रंथों की खोज में मिले प्रमुख रचनाकारों और रचनाओं के विषय में संक्षिप्त टिप्पणी नीचे दी जा रही है। इस त्रिवर्षी का संपूर्ण विवरण सुविधा- नुसार प्रकाशित किया जायगा। प्रज्ञात रचनाकार सिद्ध सिद्धों में से गोरखनाथ, भरथरी, चिरपट, गोपीचंद, जलंधरोपाव, पृथ्वीनाथ, चौरंगीनाथ, कणेरीपाव, हातोपाव, मोडकीपाय, हणवंत, नागाधरजन, सिद्धहरताली, सिद्धगरीष, धूंधलीमल, रामचंद्र, बालगुदाई, घोड़ाचोली, भजपाल, चौणकनाथ, देवतानाथ, महादेव, पारवती, सिख- मालीपाव, सुकुलहंस और दत्तात्रय की वाणियाँ और सबदियाँ मिली हैं। हस्तलेख में रचना-काल का उल्लेख नहीं मिलता, लिपि-काल संवत् १८५५ है। प्रस्तुत वाणियों और सदियों द्वारा इन सिद्धों के समय, जीवनवृत्त आदि के संबंध में कुछ पता नहीं चलता। इनका समय साधारणतः १० वीं शताब्दी से १४ वीं शताब्दी तक कहा जाता है। भरथरी, गोपीचंद, चिरपट और घोड़ाचोली की सदियों द्वारा जीवनवृत्त संबंधी कुछ बातें प्रकट होती हैं, जो बहुत ही सामान्य एवं लोक- प्रसिद्ध हैं। सबदियों में भाषा का प्राचीन रूप पाया जाता है। जिस हस्तलेख में ये सदियाँ है उसमें गुत से निर्गुण संतों को भी पापियाँ है। यह सभा को मिल गया है। संत संतों में से बावरी साहिबा, बीरूसाहब, यारो साहय, बुल्ला साहब और विरंच गोसाई मुख्य हैं। प्रथम चार संत गुरु शिष्य क्रम से एक ही परंपरा के है। एक हस्तलेख में इनके कुछ शब्द तथा वालियाँ मिली है, जिनका विषय संत. मतानुसार साधारणतः दार्शनिक सिद्धांतों का वर्णन, भक्ति एवं शामोपदेश है। हस्तलेख में रचना-काल का उल्लेख नहीं है, लिपिकाल संवत् १८६७ वि०
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