पृष्ठ:नागरी प्रचारिणी पत्रिका.djvu/१३

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'पीठमर्द' और 'छाया नाटक श्री बलदेवप्रसाद मिश्र पीठमर्द 'नागरीप्रधारिणी पत्रिका' (वर्ष-५८: अंक-३.४ ) में कुछ साहि- त्यिक शब्दों का व्युत्पादन' नामक लेख में 'पोठमर्द' पर मेरी एक टिप्पणी है। उसमें यह सूचना भी संनिविष्ट कर ली जाय । ___ 'ब्रह्मांड पुराण' के अंतर्गत 'लसितोपाख्यान' (अध्याय ३०) में कामदेष के महादेव जी को जीतने जाने का वर्णन है। काम के साथ उसके कुछ सहायक भी थे- बसन्तेन च मित्रा सेनान्या शीतरोचिषा । रागेण पीठमर्दैन मन्दानिलरयेण च ॥६॥ पुस्कोकिलगलत्स्वान काहलाभिश्च संयुतः १६९ (काम महादेष के आश्रम में) अपने मित्र वसंत, सेनापति चंद्र, पोठमद गण और मंदानिल तथा पुस्कोकिल की अविच्छिन्न पंचम ध्वनि रूप 'काहलो' के साथ (गया)। 'राग' को पोठमर्द मानना बहुत अद्भुत सूझ है। यह पीठमर्द साहित्य की बंधी परिभाषा के भीतर नहीं है, पर कितना सुकुमार एवं कायोचित है ! 'काम' स्थल था, वह नष्ट हो गया परंतु 'राग' पार्वती के नेत्रों में दुबककर, महादेव जो के नयनों से होता हुआ उनके चित्त में प्रविष्ट हो गया और अशरीरी 'काम' की शक्ति को उसने अक्षुण्ण बनाए रखा ! एमा प्रतीत होता है कि 'काहली' कोई वाद्य था, जिसे जय-यात्रा या युद्ध के अवसर पर बजाया जाता था। यह संभवतः मगाड़े जैसा वाघ रहा होगा। 'ब्रह्मांड पुराण' ( अध्याय १७) में हो इसका उल्लेख है- निर्याणसूचनकरी दिवि द'वान काही देवता दैत्यों से लड़ने निकले । उनके निकलने को सूचना देनेवाली 'काहस्रो' आकाश में बज उठी। दध्वान' के आधार पर ही 'काहलो' को नगाड़े जैसा वाद्य माना गया है।